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भाषा
दिने लाभः स्थात् पाहारस्य प्राप्तिर्भवेत् उपलक्षणत्वात् अन्य युरपरद्युः अन्धतरेयु वा मां वा भत् यः साधु रेवं प्रति समोच्यते इति चिन्तयति त साधु अलाभपरोषही न तर्जयेत् न अभिभवेत् ३१ अत्र अलाभपरोषहे कथाहयं लौकिकं १ लोकोत्तरञ्च २ तत्र प्रथम लौकिक कथा न कथ्यते एकदा कण १ बलदेवर सत्यकि ३ दारुका एते चत्वारोऽप्यखापहृता अटव्यां वटवक्षाधी रात्रौ सुप्ताः आद्य प्रहरे दारुको यामिको जातः अन्ये त्तयः सुप्ता ४. से जोबने अंतराय दीधी ते कर्महँढण कुमारने भवि पाम्यो एकदा कष्ण महारायनौ स्त्रौढंढणा तेहनो पुच्च ढंढण कुमार वैराग्य थौ नेमिनाथ पासे
दीक्षा लीधी गोचरी करतां अंतराय कर्मे आहार पाम नहीं साधु जे साधे फिर के ते पिण आहार न पामे बौजे साधे नेम आगलि का गोचरी साथि न जावे तिवारे ढंठण कुमार भगवंत पासे आवौ अभिग्रह लोधो परायो वहिस्युं में न लेवु आपणौ लब्ध आहार मिले तो लेवो इम अभिग्रह पालता घणो काल हुवा एकदा श्रीकृष्णनेमनाथ ने पूच्चो भगवन् अठार हजार सांधां में दुक्कर क्रियानी करण हार कुण के अने आज केवल ग्यान कुण पामसौ तिवारने मिक धु तुमारी पुच ढंढण कुमार दुक्करकारक आज केवल ग्यान पामस्थे ए श्रीनेमनाथनो बचन सांभलिते हवें श्रौद्दारिकाई' पाछा आवतां भिक्षाई भमता ठंढण कुमार गलौमे देख्या भक्ति सहित वंदणा कीधी तेहवे कोई एक व्यवहारी कृष्ण वांदता देखी चिंतव्यो ए मोटी साधु के जेहने कृष्ण वासुदेव वादे तो ए माहरे घरे आवेतो एहने आहार यु एहवो चिंतवौ साधुने बोलायो व्यवहारौये सूझतो मोदिक प्राप्या तेलेई श्रीनेम नाथ पासे प्राध्या गमणागमण पडिकमी पूछे भगवन माहरो अंतराय कर्मक्षय गयो जे मे शव मोदिक लाधा तिहां श्रीनेम कहेए क्लष्णनी लब्धि ताहरी लब्धि नधौ एहवो सांभलि चिन्तव्यो मुझने परलब्धनो आहार न लेवो ते भणी आहार परिठवाने हेत राख माहि चूरता कर्म चूया शुभ भावना धरै धन्ध पौनेमि माहरोपण राख्यो नही तो भंग पडतइम के वलग्या न ऊपनो के तला वर्ष केवल पालि मुक्ति पुहता जिम ढण्टण
राय धनपतसिंह बाहादुर का आ-सं० उ. ४१ मा भाग