Book Title: Agam 43 Mool 04 Uttaradhyayan Sutra Shwetambar
Author(s): Rai Dhanpatsinh Bahadur
Publisher: Rai Dhanpatsinh Bahadur

View full book text
Previous | Next

Page 1062
________________ IN Fr १०॥ * सन्ततिं प्राप्य अनादयोऽपर्यवसिताः स्थितिं भवस्थिति कायस्थितिं प्रतीत्यसादिकाः सपर्यवसिता अपि १४१ (एगूणपत्रहीरत्ता उक्कोसेणवियाहिया तेन्दियाउठिई अन्तीमुइत्त जहनिया१४२) वींद्रियजीवानां एकोनपञ्चाशद्दिनानि उत्कष्टा आयुः स्थितिाख्याताः जघन्यकाअन्तर्मुइत आयुस्थिति * रस्तौतिभावः १४२] अथ कायस्थिति माह [सखिज्जकालमुक्कोस अन्तोमुडुत्त जहवयं तेन्दियकाठिई तं कायं तु अमुच्चयो१४३] पौंद्रियाणां स्वकार्य ४ बौद्रियकार्य अमुञ्चतां मृत्वा तत्र वोत्पद्यमानानां उत्कृष्टा संख्ये यकालं स्थितिः जघन्यतस्तु अन्तमुहर्त एव स्थितिरस्ति १४३ अथ कालस्यांतरमाह [अर्णतकालमुक्कोस अन्तीमुहुत जहब्रयन्ते इन्दियजीवाणं अन्तरं तु वियाहियं १४४] त्रींद्रियजीवानां स्वकायात् यु त्वा अनात्रयो नौ उत्पद्यते तदा तु उत्क्वष्ट' अनन्तकालं अन्तरं भवति वनस्पति कायेऽनन्तकालस्य सम्भवात् जघना अन्तम इत्त व्याख्यातं १४४ (एएसिवनीचेव गन्धोरस साईया सपज्जब सियाबिय १४१। एगुणपन्न हीरत्ता उक्कासिण बियाहिया। तेदिय आउ ठिई अतोमुहुत्तं जह निया १४२ ॥ संखेज्ज काल मक्कासा अतोमहत्तं जहनिया। तेडू दिय काय ठिई तं कायतु अमची १४३ ॥ अयंत काल मुक्कासं अंतोम हुत्त जहन्नयं । ते इंदिय जौबाणं अतरेयं विभाहियं १४४ ॥ एएसिं वन्नओ चे व गधो रस जीवनौ पाउखानी स्थिति अंतर्मुहर्त जघना १४१ संख्यात काल उत्क्कष्टो अंतर्मुहत जघना तेंद्रौनौकाय स्थिति तेहनी ते माहि रहे तेंद्रीकायना % अमूकत् १४२ अनंतकाल उत्कष्टो अंतमहतं जपना चेंद्रीय जीवनी प्रांतरो को एक प्रकार १४१ एतेंद्री जीवने बर्मथकी गंधथको रसथको फरसबको संस्थानना आदेशथको विधानभेद सहस्रगम र १४४ चौरिद्री जे जीव विभेदे कसा तीर्थ कर पर्याप्ता अपर्याप्ता तहनाभेद सांभलि रायधनपतसिंह वाहादुर का पा.सं.२०४१ मा भाग

Loading...

Page Navigation
1 ... 1060 1061 1062 1063 1064 1065 1066 1067 1068 1069 1070 1071 1072 1073 1074 1075 1076 1077 1078 1079 1080 1081 1082 1083 1084 1085 1086 1087 1088 1089 1090 1091 1092 1093 1094 1095 1096 1097 1098 1099 1100 1101 1102 1103 1104 1105 1106 1107 1108 1109 1110 1111 1112