Book Title: Agam 43 Mool 04 Uttaradhyayan Sutra Shwetambar
Author(s): Rai Dhanpatsinh Bahadur
Publisher: Rai Dhanpatsinh Bahadur
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EN
१.टौका
* रस सागराई उक्कोसेण ठिई भवे सहस्मारे जहवेण सत्तरस सागरोवमा २३१] सहवार देवलोके अष्टादश सागरोपमानि उत्कृष्टायुःस्थिति * भवेत् जघन्वतः सप्तदश सागरोपमान्यायुः स्थितिर्भवेत् २३१ (सागरा अउणवीसन्तु उक्कोसेण ठिई भवे पाणयं मिजहब अट्ठारससागरीवमा २३२) 8 आनते देवलोके एकोनविंशति सागरोपमाणि उत्कृष्ट नायुःस्थि तिर्भवेत् तथा जघन्य न अष्टादशसागरोपमान्यायुः स्थितिर्भवेत् २३२ (वौसन्तु सागराई
उक्कोसेण ठिई भवे पाणयंमिजहब्रेण' सागरा अउणवीसई २३३) प्राणतदेव लोके उत्कृष्टेन विंशति सागरोपमानायुः स्थितिर्भवेत् तथा जघनेन
एकोनविंशतिः सागरोपमानि प्रायुः स्थितिर्भवत् २३३ [सागराइक्क वीसन्तु उक्कीमेण ठिई भये पारणंमिजहण वीसह सागरोवमा २३४] पारण 8देवलोके एकविंशति सागरोपमानातकष्टा:स्थितिघनाम तु विंशति सागरोपमामि प्राय स्थितिर्भवेत् २३४ (बावीस सागराई उकोमेणाठिई भवे
नण सत्तरस सागरोवमा २३१ । सागरा अउणवीसंतु उक्कोसण ठिई भवे । पाणयमिम जहन्न णं अट्ठारस सागरो । वमा २३२॥ वीसंत सागराडू उक्कोसणठिईभवे पाणयम्मि जहन्नेणं सागरा अउणवीसई २३३॥ सागराएक्कवीसंतु उक्को
सेण ठिई मवे। आरणमि जहन्न णं वीसई सागरोबमा २३४। बावीस सागरा उक्कोसेगा ठिई भबे । अच्चुयंमि जह सत्तर सागरोपम हुई'२३१ सागरीपमयोमणीस उतकष्टी थीति हुडूआणत देवलोके जघन्य स्थिति पठार सागरोपमनी २३२ वास सागरोपमनी उत्कृष्टौ स्थिति हुई प्राणत देवलोके जघन्य सागरीमग्रीगणीस २३३ सागरीपम एकवीसनी उतकष्टी स्थिति वे पारण देवलोके देवतानी जघना बौस सागरोपमनौ २३४ वावोस सागरीपमनी उतष्टी स्थिति हुई अच्यत देवलोके जघना चउवीस सागरीषम २३५ बेवोस सागरोपम उत्छष्टी
राख धनपतसिंह वाहादुर का प्रा.सं.३०४१ मा भाग
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