Book Title: Agam 43 Mool 04 Uttaradhyayan Sutra Shwetambar
Author(s): Rai Dhanpatsinh Bahadur
Publisher: Rai Dhanpatsinh Bahadur
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० टोका
१०७८
सूत्र
भाषा
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इत्तोकालविभागन्तु तेसिंबुच्छं च उब्विहं १८१] ते सर्वे खचरालोकैकदेशे व्याख्याताः सर्वत्रः चतुर्दशरज्यात्मलोकेन सन्ति इतोऽनन्तरं तेषां खचराणां चतुर्विध' कालविभागं वच्ये १८१ [सन्तइपप्पवाईया अपज्जवसियाविय ठिई पहुच साईया सपज्जवसियाविय १८२] सन्ततिं प्राप्यते खचरा अनादयोऽप सिता अपि वर्त्तन्ते स्थितिं प्रतोत्यते सादयः सपर्यवसिता अपि सन्ति १८२ (पलिओ वमाभागो असंखिन्न यमोभवे चउठिरह यराणं श्रन्तो मुहुत्त जहनिया १८२) खचराणां श्रायुः स्थितिः पलरोपमस्य असंख्येयतमो भागो भवति जघनित्रका आयुः स्थितिरन्तमु हर्त्त' भवति १८.३ अथ खच राणां आयुःस्थितिः पलोपमस्य असंख्येय तमोभागो भवति जघनाका श्रायुः स्थितिरन्तर्मुहर्त्त' भवति १८३ अथ खचराणां कार्यस्थिति कालांतरं Teri गाथाभ्यां वदति [असंखभागोपलिया उकोसेणसाहिओ पुव्वकोडौ पुहतेय' अन्तोमुहुत्त' जहनिया १८४] कार्यठिईखहयराण' अन्तरं ते सिमं गोय चउब्बिहा । लोएगदेसे तेसब्वे न सब्बत्य वियाहिया ॥ १६० संतद्र पप्पणाईया अपज्जवसियाविय । ठिप डुच्च साईया सपज्जवसियाविय ॥ १६१ पलिश्रवमस्म मागा असंखेज्ज इमो भवे । आउ ठिई खहयराणं अंतीमहत्त जहन्निया ॥ १६२ असंखभागी पलियम उक्कोंसेण वियाहिओं । पुष्बकोडी पुहुत्त णं अंतोमुहुत्तं जहन्निया ॥ ११३ urat कहीये १८३ विततपोहलो पांखे ऊडे ते वितत पंखौ जाणवा पंखौ च्यारप्रकारना लोकने एक देशे सबला नथी सघले भगवंते कला १८७ प्रवाहमार्ग श्री ए पंखौ धनादिके १८८ पत्योपमनो अशंख्या तमो भाग उत्कृष्टो भाउखानि स्थिति खचर पंखो आनी अंतमु जघने १८८ असंख्या तमोभाग पढ्योप मनो लत्कष्टो साधिक भारो पूर्व कोड पृथकत्व पूर्वकोडिवा लाभव १ करो असंख्याता आउखानाभव करतो अंतर्मुहु
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राय धनपतसिंह बाहादुर का पा०सं००४१ मा भारा

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