Book Title: Agam 43 Mool 04 Uttaradhyayan Sutra Shwetambar
Author(s): Rai Dhanpatsinh Bahadur
Publisher: Rai Dhanpatsinh Bahadur

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Page 1085
________________ एन्टोका श्र० २६ १०८६ सूव भाषा E-30 *************************** ग्रैवेयकाः अनुत्तराय तत्र ग्रैवेयका नवविधा तत्र ग्रौवालोक पुरुषस्य वयोदशरन्वाम स्थानीय प्रदेशस्तव ग्रौवायां अतीव शोभाकरण हेतव आभरण भूताग्रे वेया देवावासास्तत्र भवा देवा वैयकास्ते नव प्रकाराने याः २१४ तेषां ग्रेवेयाणां नामानि (हिट्टिमा हिट्टिमा चेव १ हिमाम किमाहार हिट्टिमाउ वरिमाचेवर मज्झिमाहिट्टिमातहा४ २१५) (मकिमामक्रिमाचेव५ मक्तिमा उवरिमातहा६ उवरिमाहिहिमाचेव उवरिमा उवरिमाचेवट) उपरितन घट कापेचया प्रथमेषु अधस्तना प्रधस्तना चैव पद पूरणे १ प्रथमग्र वेय देवाः १ अवस्तनाथ मध्यमास अधस्तनामध्यमाः १ द्वितीयग्र वेयदेवाः २ तथा अधस्तनोपरितनाः तृतीयय पेय देवाः ३ तथा मध्यमाधस्तनाः मध्यस्त विकापेचया अधस्तनाचतुर्थ वेय देवाः २१५ [च पुनर्मध्यमाः मध्यमाः मध्यमस्थत्रिका पेचया मध्यमा मध्यमा पंचमग्र वैयक देवाः तथा मध्यमत्रिका पेचया उपरितमा मध्यमोपरितमाः षष्टये वैयक देवा' पुनरुपरितनाधस्तनाः उपरि स्थविकापेचया अधस्तनाः उपरितनाधस्तनाः सप्तमर्थ वैयकदेवाः तथा उपरिमध्यमाः उपरितनत्रिकापेचया. चव इद्र कप्पीवगा सुरा २१२ ॥ कप्पाईयाय देवा दुविहा ते वियाहिया । गेबेब्जा गुत्तरा चव गेवेज्जा नव विहा तहिं २१३ ॥ हिट्टिमा २ चे व हिट्टिमा मज्झिमा तहा । हिट्टिमा उवरिमा चैव मज्झिमा हिठ्ठिमा तहा २१४. ॥. धरण देवलोक ११ अच्युत देवलोकना १२ इथे प्रकार कल्प देवलोकना १२ मेद ऊपना देवता २०८ कल्पातीत नवग्रे वेयकादिकना जे देवता विह प्रकारे ते कच्चा लोक रूप नर पुरुषने ग्रौवा कोट समानते ग्रे वेयकना देवता उत्तम प्रधान सुख प्रभाव जोहां ते अनुत्तर विमान देवता येवैयक नव प्रकारे जांणवा २१० नवमी अपेचाइ हेठिलामांहिं हेठला पेहला देवता हेठिल्यानो अपेक्षार मध्यम विचालानो वोजोनी देवता तौम 'हेठलानी *********************************************** रायधनपतसिंह वाहादुर का प्रा० सं०ड० ४१मा आग

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