Book Title: Agam 43 Mool 04 Uttaradhyayan Sutra Shwetambar
Author(s): Rai Dhanpatsinh Bahadur
Publisher: Rai Dhanpatsinh Bahadur

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Page 1051
________________ ४० टौका अ०३६ १०५२ सूत्र भाषा उकोसेणं सत्तरिंसागरोवमकोडाकोडोओ निगोदेण' भन्ते निश्रोदेत्ति कालतोकेविच्चिर' होन्ति जहत्रेण तं चैवउकोमेणं असंखेन्ज' कालमिति २०४ अथ कालस्यांतरमाह [ असंखकालमुकोस' अन्तोमुहुत्त जहत्रियं विजट मिसएकाए पणगजीवाण अन्तर १०५] पनकजीवानां स्वकौयेकायेत्यक्त सति अपरस्मिन् पृथिव्यादिषु कार्येषु उत्पद्य पुनः पनकत्वेन उत्पद्यमानानां उत्कृष्ट असंख्यकाल अन्तरं भवति जघनंत्र अन्तरं अन्तर्मुहर्त्त ं भवति इति कालांतरं प्रतिपादितं अथ प्रकृति मुपसंहृत्य अग्रे तनं सम्बन्ध' सूचयति [ एएसिम्बनघोचैव गन्धओर सफासश्र सण्ठाणादेश्रोवावि विहाणाइ सह स्मसो १० ६] एतेषां शूक्ष्मबादरवनस्पति जीवानां वर्णतोगन्धतोरसतः स्पर्शतः संस्थानादेशतञ्चापि सहस्रोविधानानिभवन्ति सहस्रशः शब्देन असंख्ये याः अनन्ताश्वभेदाभवन्ति इत्य ुच्यते १०६ [इच्चेएथा वरातिविहा समासेण वियाहिया इत्तोयतसेतिविहे बुच्छामि अणपुव्वसी १०७] इति अमुनाप्रकारेण एतेचि असंखकाल मुक्कोसं अंतीमुहुत्तं जहन्नयं । विजढंमि सए काए पणग जीवाणं अंतरं १०५॥ एएसिं बन्न च ेव गंध रस फास । संठाणा देसवावि बिहाणा सहासी १०६ ॥ इच्चेते थावरा तिविहा समासेण वियाहिया । इत्तीउ तसे तिविहे वोच्छामि अणुपुव्वसो १०७ ॥ तेऊ बाजय बोधव्वा ओरालाय तसा तहा । दूच्चेए तसा तिविहा तेसिं तू नगोदकाय मूंके पृथिव्यादि माहिजाइ पछे आवेतो अंतरपडे १०४ वनस्पती सूक्ष्म वादर वर्णथको गंधथको रसको फरसथको संस्थान देशनामेदथको विधानभेदसहस्र १०५ ए पूर्वे कया ते घावर पृथ्वी पाणी वनस्पति त्रोहमेदे संखेपे कह्या तीर्थकरा एतला कह्यानंतरव स विभेदे कह ंछु' ए वचन भगवंतनु' १०६ तेऊ कायना जीव वाककायना जीव उदार मोटा वेंद्रियादित्र स तिम ए. पूठे कया तेवस विहभेदे तेहना भेद ***************************************** रायधनपतसिंह वाहादुर का श्र०सं० उ० ४१.मा. भाग

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