Book Title: Agam 43 Mool 04 Uttaradhyayan Sutra Shwetambar
Author(s): Rai Dhanpatsinh Bahadur
Publisher: Rai Dhanpatsinh Bahadur
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उ. टौका
अ.१
१३
इत्ताणं विठं भुञ्जद सूयर एवं सौलञ्च इत्ताणं दुस्सौले रमईमिए ५ व्याख्या एवं अमुना प्रकारण अनेन दृष्टान्तेन मिए इति मृगी मूर्वोऽविवेको शोलं सम्यगाचारन्त्यका दुःशौले दुष्टाचार रमते अत्र शौल शब्दो विनयाचार सूचक: केन दृष्टान्तेन तदाह यथा शूकरः कणकुण्डक तण्डु लभक्ष्य भृतं भाजनस्य का विष्ठा मुक्त तथा घोलन्त्यला मूर्खः कुशीलं आदत्ते दुःशीलस्य विष्टोपमामूर्खस्य शूकरीपमा तण्ड लभूतभाजनस्य पौलस्योपमासूत्र सुणिया भावं साबस्स सूयरस्म नरस्मय विनए ठविज्ज अप्पाणं इच्छन्तोहियमप्पणो ६ व्याख्या आत्मनो हितं इच्छन् पुरुष: आमानं विनये स्थापयेत् किं कृत्वा. शन: कुर्करस्य पुनः शूकरस्य नरस्य अभावं अशुभं भावं दृष्टान्त निन्द्य' उपमानं सुणिय इति श्रुत्वा पूर्व गाथायां शनौ पूति कर्णीति स्त्रीलिङ्ग
निक्कसिज्जई ॥४॥ कण कुड़ग चत्ताणं विठ्ठ भुजडू सूयरे । एवं सौलं चत्ताणं दुस्मीले रमई मिए ॥५॥ सुणिया
भावं साणम्म सूयरस्म नरस्मय । विणए ठविज्ज अप्याणं दूच्छतो हिय मप्पणी ॥६॥ तम्हा विषय मेसिज्जा सील पडि उपरि दृष्टांत पूरो हुवोऽथाने सूबमाह १ ज. जिमस • कूतरौ पू. कुया काननी एतले रुधिर लोही वहे एहवी कुतरी णि. ते कुतरौ काढिये स० सर्वस्थानक थको एतले जिहां जाय तिहां काढौये ए. एणी पर दु० भूडा आचारनो धणी प० प्रत्य नीक वैरी सारिखो के मु. असंवधभाषे एहवा अव नौत पणो णि काढोये गच्छादिक थको४ क कणतंदुलहनो कु० कुणसडो कुचो च छोडौने वि०विष्ठाम भोगवे सु० सूकर ए० एणी परे अवनौतसौल भलो आचारच. छाडौने दु. भूडा आचारने विषे प्रवर्त मि० पशुमृगसरिखो ते अवनीत ५ सु० सांभलौने भा. दृष्टान्त सा. खाननो सू सूयरनी अनेन अविनित मनुष्यनो दृष्टान्त सांभलौने वि. विनयने विषे ठ० स्थाप पोताना आमाने इ. वांछतो थको हित म. आपणा आमाने ६ अविनय
राय धनपतसिंघ बाहादुर का पा० सं० उ०४१ मा भाग
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