________________
आगम सूत्र ३८, छेदसूत्र-५, 'जीतकल्प' असंक्लिष्ट कर्म का सेवन करना, हास्य-कुचेष्टा करना, विकथा करना, क्रोध आदि चार कषाय का सेवन करना, शब्द आदि पाँच विषय का सेवन करना, दर्शन-ज्ञान-चारित्र या तप आदि में स्खलना होना, जयणायुक्त होकर हत्या न करते होने के बावजूद भी सहसाकार या अनुपयोगदशा से अतिचार सेवन करे तो मिथ्या दुष्कृत रूप प्रतिक्रमण से शुद्ध बने यदि उपयोग या सावधानी से भी अल्प मात्र स्नेह सम्बन्ध, भय, शोक, शरीर आदि का धोना आदि और कुचेष्टा-हास्य-विकथादि करे तो प्रतिक्रमण प्रायश्चित्त जानना । यानि इस सबमें प्रतिक्रमण योग्य प्रायश्चित्त आता
है।
(अब गाथा १३ से १५ में तदुभय प्रायश्चित्त बताते हैं ।) सूत्र-१३-१५
संभ्रम, भय, दुःख, आपत्ति की कारण से सहसात् असावधानी की कारण से या पराधीनता से व्रत सम्बन्धी यदि कोई अतिचार सेवन करे तो तदुभय यानि आलोचना और प्रतिक्रमण दोनों प्रायश्चित्त आता है, दुष्ट चिन्तवन, दुष्ट भाषण, दुष्ट चेष्टित यानि मन, वचन या काया से संयम विरोधी कार्य का बार-बार प्रवर्तन । वो उपयोग परिणत साधु भी इन सबको दैवसिक आदि अतिचार के रूप से न जाने, तो और सर्व भी उत्सर्ग और अपवाद से दर्शन, ज्ञान, चारित्र का जो अतिचार उसका कारण से या सहसात् सेवन हुआ हो तो तदुभय प्रायश्चित्त आता है।
(गाथा १६-१७ में 'विवेक'' योग्य प्रायश्चित्त बताते हैं ।) सूत्र-१६-१७
अशन आदि रूप पिंड, उपधि, शय्या आदि को गीतार्थ सूत्रानुसार उपयोग से ग्रहण करे वो यह शुद्ध नहीं है ऐसा माने या निरतिचार-शुद्ध विधिवत् परठवे, काल से असठपन से पहली पोरसी से लाकर चौथी तक रखे, क्षेत्र से आधा योजन दूर से लाकर रखे, सूर्य नीकलने से पहले या अस्त होने के बाद ग्रहण करे । यानि ग्रहण करने के बाद सूर्य नहीं नीकला या अस्त हुआ ऐसा माने, ग्लान-बाल आदि की कारण से अशन आदि ग्रहण किया हो, विधिवत् परिष्ठापन किया हो तो इन सबमें विवेक-योग्य' प्रायश्चित्त आता है।
(अब काऊस्सग्ग प्रायश्चित्त बताते हैं ।) सूत्र-१८
गमन, आगमन, विहार, सूत्र के उद्देश आदि, सावध या निरवद्य स्वप्न आदि, नाँव, नदी से जलमार्ग पार करना उन सबमें कायोत्सर्ग प्रायश्चित्त । सूत्र-१९
भोजन, पान, शयन, आसन, चैत्य, श्रमण, वसति, मल-मूत्र, गमन में २५ श्वसोच्छ्वास (वर्तमान में जिसे लोगस्स यानि ईरियावही कहते हैं वो) काऊस्सग्ग प्रायश्चित्त आता है । सूत्र - २०
सौ हाथ प्रमाण यानि सो कदम भूमि वसति बाहर गमनागमन में पच्चीस श्वासोच्छवास, प्राणातिपात, हिंसा का सपना आए तो सो श्वासोच्छ्वास और मैथुन के सपने में १०८ श्वासोच्छ्वास काऊस्सग्ग का प्रायश्चित्त आता है सूत्र-२१
दिन सम्बन्धी प्रतिक्रमण में पहले ५० के बाद २५-२५ श्वासोच्छवास प्रमाण, रात्रि प्रतिक्रमण में २५-२५ श्वासोच्छ्वास प्रमाण, पविख प्रतिक्रमण में ३०० श्वासोच्छ्वास, चौमासी प्रतिक्रमण में ५०० श्वासोच्छ्वास, संवत्सरी में १००८ श्वासोच्छ्वास प्रमाण काऊस्सग्ग प्रायश्चित्त आता है। अर्थात् वर्तमान प्रणाली अनुसार दैवसिक में लोगस्स दो-एक-एक, रात्रि में लोगस्स एक-एक, पविख में १२ लोगस्स, चौमासी में २० लोगस्स और संवत्सरी
मुनि दीपरत्नसागर कृत् “(जीतकल्प)” आगम सूत्र-हिन्दी अनुवाद"
Page 6