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आगम सूत्र ३८, छेदसूत्र-५, 'जीतकल्प' सूत्र - ४४
सहसात् और अनाभोग से जो-जो कारण से प्रतिक्रमण-प्रायश्चित्त बताया है उन कारण का आभोग यानि जानते हए सेवन करे तो भी बार-बार या अति मात्रा में करे तो सबमें नीवि तप प्रायश्चित्त जानना । सूत्र - ४५
दौड़ना, पार करना, शीघ्र गति में जाना, क्रीड़ा करना, इन्द्रजाल बनाकर तैरना, ऊंची आवाझ में बोलना, गीत गाना, जोरों से छींकना, मोर-तोते की तरह आवाझ करना, सर्व में उपवास-तप प्रायश्चित्त । सूत्र - ४६-४७
तीन तरह की उपधि बताई है जघन्य, मध्यम और उत्कृष्ट वो गिर जाए और फिर से मिले, पडिलेहण करना बाकी रहे तो जघन्य मुहपत्ति, पात्र केसरिका, गुच्छा, पात्र स्थापनक उन चार के लिए नीवि तप, मध्यम पड़ल, पात्रबँध, चोलपट्टक, मात्रक, रजोहरण रजस्त्राण उन छ के लिए पुरिमड्ड तप और उत्कृष्ट-पात्र और तीन वस्त्र उन चार के लिए एकासणा तप प्रायश्चित्त विसर जाए तो आयंबिल तप, कोई ले जाए या खो जाए या धोए तो जघन्य उपधि-एकासणु मध्यम के लिए आयंबिल, उत्कृष्ट उपधि के लिए उपवास । आचार्यादिक को निवेदन किए बिना ले आचार्यदि के झरिये बिना दिए ले भूगते-दूसरों को दे तो भी जघन्य उपधि के लिए एकासणा यावत् उत्कृष्ट के लिए उपवास तप प्रायश्चित्त । सूत्र -४८
मुहपत्ति फाड़ दे तो नीवि, रजोहरण फाड़ दे तो उपवास, नाश या विनाश करे तो मुहपत्ति के लिए उपवास और रजोहरण के लिए छठ तप प्रायश्चित्त आता है। सूत्र-४९
भोजन में काल और क्षेत्र का अतिक्रमण करे तो नीवि, वो अतिक्रमित भोजन भुगते तो उपवास, अविधि से परठवे तो पुरिमडू तप प्रायश्चित्त । सूत्र - ५०-५१
भोजन-पानी न बँके, मल-मूत्र-काल भूमि का पडिलेहण न करे तो नीवि नवकारसी-पोरीसि आदि पच्चकखाण न करे या लेकर तोड़ दे तो पुरिमड्डू यह आम तोर पर कहा, तप-प्रतिमा अभिग्रह न ले, लेकर तोड़ दे तो भी पुरिमड्ड पक्खि हो तो आयंबिल या उपवास तप, शक्ति अनुसार तप न करे तो क्षुल्लक को नीवि, स्थविर को पुरिमडू, भिक्षु को एकासणा, उपाध्याय को आयंबिल, आचार्य को उपवास । चोमासी हो तो क्षुल्लक से आचार्य को क्रमशः पुरिम से छठू, संवत्सरी को क्रमशः एकासणा से अठ्ठम तप प्रायश्चित्त मानना चाहिए। सत्र-५२
निद्रा या प्रमाद से कायोत्सर्ग पालन न करे, गुरु के पहले पारे, काऊस्सग्ग भंग करे, जल्दबाझी में करे, उसी तरह ही वंदन करे, तो नीवि-पुरिमडू एकासणा तप और सारे दोष के लिए आयंबिल तप प्रायश्चित्त । सूत्र - ५३
एक काऊस्सग्ग आवश्यक को न करे तो पुरिमड्ड-एकासणा-आयंबिल, सभी आवश्यक न करे तो उपवास, पूर्वे अप्रेक्षित भूमि में रात को स्थंडिल वोसिरावे, मल-त्याग करे या दिन में सोए तो उपवास तप प्रायश्चित्त ।
सूत्र-५४
कई दिन तक क्रोध रखे, कंकोल नाम का फल, लविंग, जायफल, लहसून आदि का तण्णग-मोर आदि का संग्रह करे तो पुरिमड्ड। सूत्र- ५५
___ छिद्र रहित या कोमल और बिना कारण भुगते तो नीवि, अन्य घास को भुगतते हुए या अप्रतिलेखित घास मुनि दीपरत्नसागर कृत् “(जीतकल्प)” आगम सूत्र-हिन्दी अनुवाद”
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