Book Title: Agam 35 Chhed 02 Bruhatkalpa Sutra Part 01
Author(s): Bhadrabahuswami, Chaturvijay, Punyavijay
Publisher: Atmanand Jain Sabha
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लिखित प्रतिओनो परिचय । पृ० २४१ पं० १३ मां
0 आवा हस्तचिह्नना वचमांना पाठो अने पृ० २३५ प० १८, पृ० २३७ पं. ७ मां स » आवा चिह्नना वचमांना पाठो ।
भा० त० डे० प्रतोमा जे वधाराना पाठो छे तेम ज एकली भा० प्रतमा जे तद्दन जुदा प्रकारना अने वधाराना टीकासंदर्भो छ तेमांना केटलाक तो चूर्णि अने विशेपचूर्णिने अनुसरता छे, जे अमे तुलना माटे ते ते स्थळे टिप्पणमा आप्या छ । जुओ पृ० १९३ टि० १, पृ० २०० टि० ६, पृ० २०८ दि० ८, पृ० २२३ टि. ३-६, पृ० २२८ टि० २, पृ० २३१ टि० २-८, पृ० २३५ टि. ६, पृ० २४५ टि. १, पृ० २४६ टि. ३, पृ० २९५ टि० २, पृ० ३०६ टि० १-२, पृ. ३१३ टि० २ इत्यादि । विशेषचूर्णिनी प्रति माटे अमे घणे य स्थळे तपास करी तेम छतां तेनी मात्र एक वे प्रतिओज अमे मेळवी शक्या छीए अने ते पण आरम्भथी नहि परन्तु पीठिका अने प्रलम्बप्रकृत समाप्त थया पछीनो भाग एटले के प्रथम उद्देशनां पांच सूत्र समाप्त थया वाद मासकल्पप्रकृत शरु थाय छे त्यांथी छे । आ कारणथी पीठिकाविभागमां तुलना माटे अमे तेना पाठो आपी शक्या नथी, पण मासकल्पप्रकृतथी अमे ते पाठो दाखल कर्या छे जेने वाचको आ ग्रन्थना वीजा विभागमा जोई शकशे ।
__ उपर अमे संशोधन माटे एकत्रित करेल प्रतोनी समानता आदि विषे जे काइ लख्युं छे ते मोटा भागे आवता पाठान्तरोने ध्यानमा राखीने लख्युं छे; नहि तो एक वीजा वर्गनी प्रतो एक वीजा वर्गनी प्रतो साथे घणी वार अनियमित रीते सेळभेळ थई जाय छे अने जुदी पण पडी जाय छे । तेथी केटलीक वार अमुक पाठ भा० त० डे० प्रतिमां होय अने केटलीक वार त० डे० प्रतिमा होय तो केटलीक वार भा० त० प्रतिमा होय अने केटलीक वार वळी भा० डे० प्रतिमा होय ज्यारे केटलीक वार भा० कां० प्रतिमा ज होय एम बने छ । आ ज रीते केटलीक वार अमुक पाठ मो० ले० कां० प्रतिमा होय तो केटलीक वार भा० मो० ले० प्रतिमां होय तो केटलीक वार मो० ले० मां ज होय एम पण बने छे । घणी वार एम पण बने छे के--अमुक पाठ भा० सिवायनी बधी ये प्रतिओमां एक सरखो होय अने मात्र भा० प्रति ज जुदी पडी जाय छे । ज्यारे आ समान वर्गनी प्रतो आपस आपसमा जुदाई धारण करे छे त्यारे जुदाई धारण करनार प्रतो सिवायनी शेप प्रतो मोटे भागे वीजा वर्गनी प्रतो साथे सरसाई धरावती थई जाय छे । आ वधुं य अमे टिप्पणमां आपेल पाठान्तरो जोवाथी सहेजे समजी शकाय तेम छ ।
प्रस्तुत ग्रन्थमा डगले ने पगले जे पाठान्तरो, फेरफारवाळा पाठो अने वधाराना टीकासंदर्भो आवता रह्या छे ए उपरथी अमे एम मानीए छीए के प्रस्तुत ग्रन्थनी टीका रचाया पछी तेमां विद्वानोए घणो ज हस्तक्षेप कर्यो छे । आ हस्तक्षेप योग्य गणाय के अयोग्य एनो निर्णय करवानुं काम विद्वानोनुं छे; तेम छतां अमने ए अनुभव केटले य
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