Book Title: Agam 35 Chhed 02 Bruhatkalpa Sutra Part 01
Author(s): Bhadrabahuswami, Chaturvijay, Punyavijay
Publisher: Atmanand Jain Sabha

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Page 18
________________ लिखित प्रतिओनो परिचय । तपा आचार्य श्रीक्षेमकीर्तिविरचित टीकानी शरुआत थतां (जुओ पत्र १७७ ) उपरोक्त छ ए प्रतिओ आश्चर्य पमाडे तेवी रीते त्रण वर्गमां वहेंचाई गई छे । पहेलो वर्ग त० अने डे० प्रतिनो, बीजो वर्ग मो० ले० अने कां० प्रतिनो अने त्रीजो वर्ग भा० प्रतिनो। आ रीते उपरोक्त छ प्रतिओना त्रण विभाग पडी गया छे । प्रतिओनी समानता असमानता-त० प्रति अने डे० प्रति कोई आपवादिक स्थळ बाद करी लईए तो सर्वथा समानता धरावती प्रतो छे । ए ज रीते मो० ले० अने कां० ए त्रणे प्रतो परस्पर समानता धरावती प्रतो छ तेम छतां कां० प्रति मो० ले० प्रतिओ करतां केटलीक वार जुदुं वलण ले छे पण ते वहु ज ओछा प्रमाणमां । आनुं कारण अमने ए जणाय छे के-कां० प्रतिनी नकल जे प्रति उपरथी करवामां आवी छे तेमां ते प्रतिना विद्वान वाचके त० प्रतिने मळती कोई प्रति साथे सरखावतां नजरे पडेल वधाराना पाठो कोइक कोइक ठेकाणे उमेर्या छे ए छे। जुओ पृष्ठ २११ पंक्ति ४, पृ. २१२ पं. २४, पृ. २२३ पं. ९, पृ. २३३ पं. ३ इत्यादि । आ उमेराने आपणे बाद करी लईए तो कां० प्रति मो० ले० प्रतिओने मळती प्रति गणी शकाय । भा० प्रति बधी ये प्रतो करतां जुएं वलण धरावती प्रत होवा छतां त० डे० प्रति साथे एनुं साम्य वधारे छे । प्रतिओनी विशेषता अने तेमां थयेल परिवर्तन-भा० त० डे० प्रतिओमां मो० ले० कां० प्रतिओ करतां ठेकठेकाणे वधाराना पाठो आवे छे, ए करतां य वधारे आश्चर्यकारक वात तो ए छे के एकली भा० प्रतिमां डगले ने पगले टीकाना संदर्भोना संदर्भो ज जुदा जुदा प्रकारना गुंथायेला आव्या करे छे । आ बधा य संदर्भोने अमे पाठान्तररूपे टिप्पणमा आप्या छ । भा० प्रतिमां थयेल टीकार्नु आ महान् परिवर्तन खुद टीकाकार महाराजे करेल छे के ते पछीना कोई विद्वान आचार्ये कर्यु छे ए निर्णय करवा माटेनां कशां य निश्चित प्रमाणो अमारा पासे नथी; तो पण भा० प्रतिमां तूटी गयेल अक्षरो अने पंक्तिओने सूचववामाटे ठेकठेकाणे खाली जगा मूकवामां आवी छे ए उपरथी एटलुं स्पष्ट रीते जाणी शकाय छे के-भा० प्रति कोई जीर्ण प्राचीन ताडपत्रीय अथवा कागलना पुस्तकादर्श उपरथी लखाई छ । अने ते उपरथी एम कहीं शकाय के-भा० प्रतिमां थयेल टीकार्नु परिवर्तन ए आधुनिक नथी पण टीकाकारना जमानाना लगभगमां ज थयेल छ । ___ भा० त० डे० प्रतोमा वधारे पडता जे पाठो छे, जे मो० ले० का० प्रतिमा नथी, तेमांना केटलाक पाठो तो एवा छे के जेना अभावमा टीकाना अर्थनुं अनुसंधान जरा य तूटे नहि; परन्तु केटला एक पाठो एवा छे के जेना विना आपणे चलावी न शकीए; अर्थात् ए पाठो माटे आपणे एम खातरीथी मानी शकीए के ए पाठो लेखकना प्रमादथी ज पडी गया छ । जुओ पृष्ठ २३१ पंक्ति ३, पृ० २४० ५० ५, Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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