Book Title: Agam 35 Chhed 02 Bruhatkalpa Sutra Part 01 Author(s): Bhadrabahuswami, Chaturvijay, Punyavijay Publisher: Atmanand Jain SabhaPage 17
________________ १४ लिखित प्रतिओनो परिचय । सवृत्तिको वृहत्कल्पः छेदग्रन्थः सुशोभनः । तेनायं लेखयांचक्रे स्वपितुः पुण्यहेतवे ॥ ५ ॥ गच्छे स्वच्छतरे तपोऽभिधगणे विज्ञा बभूवुमित्वह . प्रख्याता भुवने सदैव विजयानन्दाभिधाः सूरयः । श्रीमन्तो विजयाभिधाः कमलयुगवाचंयमा निर्ममा वर्तन्ते भुवि सूरयः सुविदितास्तेपां पदे साम्प्रतम् ।। ६ ॥ विक्रमसंवत्सरतो नेत्रकायाङ्कोडुपेषु वर्षेषु । भूपतिशेरमहम्मदखानेत्याख्यस्य शुभराज्ये ॥ ७ ॥ तेन मुदा शुचिमासे विजयानन्दानूचानशिष्यस्य । पठनकृते सूत्रमिदं समर्पितं कान्तिविजयस्य ।। ८ ॥ आर्यायुग्मम् ॥" पुष्पिका जोतां जणाय छे के प्रति विक्रमसंवत् १९६२ मां लखायली छे, अने ते पालनपुरनिवासी ओसवालज्ञातीय कोठारी चेलु महेताना सुपुत्र भाई अमृतलाले पोताना पिताश्रीना कल्याणनिमित्ते लखावीने भणवामाटे श्रीकान्तिविजयजी महाराजने अर्पण करी छे। प्रति उंची जातना काश्मीरी कागळ उपर लखायली छे, तेम ज नवी लखायेल होइ तद्दन सारामां सारी स्थितिमा छे । आ प्रति प्रवर्तक श्रीकान्तिविजयजी महाराजना ज्ञानभंडारनी होवाथी तेनी संज्ञा अमे कां० राखी छे । उपर जणावेल छ ये प्रतिओ कागळ उपर सुंदरमां सुंदर लिपिथी लखायेल छ । कां० प्रति सिवायनी बची ये प्रतिओ त्रण सो अने चार सो वर्ष पहेलानी लखायेल छे अने तेना वचमां ताडपत्रनी प्रतिओनी जेम दोरो परोववामाटे खाली जगा राखवामां आवी छे । छ ये प्रतो सूत्र नियुक्ति भाष्य अने तेनी टीकासाथेनी छ । ___ छ प्रतो पैकी ले० त० अने कां० प्रति जो के शुद्ध तो न कहीं शकाय तो पण वीजी प्रतोने मुकाबले एकंदर ठीक गणाय । मो० डे० प्रतिओ अशुद्ध छे परन्तु आ बन्ने य प्रतो करतां भा० प्रति घणी ज अशुद्ध छे; तेम छतां साथे साथे ए ध्यानमा राखQ जोईये के ज्यारे बधी ये प्रतिओमां अशुद्ध पाठ होय तेवे वखते भा० प्रति केटलीक वार शुद्धमा शुद्ध पाठ पूरो पाडे छ । प्रतिओनी परस्पर समानता अने विशेषता।। संशोधनमा प्रतिओनो उपयोग-प्रस्तुत ग्रन्थना प्रथम खंडना संशोधनमाटे अमे उपर जणावेल छ प्रतो काममां लीधी छे। ग्रन्थना आरम्भमां पाठान्तरो एकंदर घणा ज ओछा अथवा नहि जेवा आवता होवाथी बधी ये प्रतो लगभग एकसरखी लागी; परन्तु पूज्यपाद आचार्य श्रीमलयगिरि सूरिकृत पीठिकाटीकाना अनुसंधानरूपे Jain Education International 4 For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.orgPage Navigation
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