________________
32 चित्रों का विवरण युक्त परिचय
३२ १३ (१) एक बार दोनों भाई दासी पुत्र बने, खेत में वृक्ष के नीचे सोये थे, सांप के काटने से मृत्यु हुई। (२) जंगल में हिरण बने, वहाँ शिकारी के तीर से घायल होकर दम तोड़ दिया। (३) फिर राजहंस बने, वहाँ एक निर्दय मछुए ने गर्दन मरोड़कर मार डाला। (४) वाराणसी में चंडाल पुत्र बने, नृत्य-गीत से जनता का मनोरंजन करने लगे। राजपुरुषों ने चंडाल पुत्रों को पीटा, दुःखी होकर साधु बन तपस्या करने लगे। राजपुरुषों द्वारा सताये जाने पर क्रोध में आकर एक मुनि ने नगर को भस्म करने तेजोलेश्या छोड़ी। (५) वहाँ से दोनों भाई स्वर्ग में उत्पन्न हुए। (पूर्व जन्म के पांच भवः गाथा ६)
३३ १३ (१) रँहट चलाने वाले के मुख से आधा श्लोक सुना तो मुनि ने आगे का श्लोक पूरा कर दिया। (२) हट चालक ने चक्रवर्ती को श्लोक की पूर्ति सुनाई। चक्रवर्ती सपरिवार चित्तमुनि के पास आया । (३) चित्तमुनि ने चक्रवर्ती को सिंह द्वारा गृहीत हरिण का उदाहरण देकर जीवन को काल का ग्रास बताते हुए उद्बोधन दिया । (गाथा २२ )
३४ १४ (१) स्वर्ग से च्यवकर छः प्राणियों में से दो राजा-रानी, दो पुरोहित दंपती, दो पुरोहित पुत्र के रूप में उत्पन्न हुए । ( गाथा ३) (२) मुनियों को देखकर पुरोहित पुत्र भयभीत होकर दौड़े। एक वृक्ष पर छुप गये। मुनियों का शान्त मुख और दयामय व्यवहार देखकर उनका भय दूर हुआ और वृक्ष से नीचे उतरकर वन्दना करने लगे । (गा. १-५ )
३५ १४ (१) पिता ने ब्राह्मण का कर्त्तव्य बताते हुए कहा- पहले वेद पढ़ो, ब्राह्मणों को भोजन कराओ, विवाह करो, फिर साधु बनना ! (२) पुत्रों ने उत्तर दिया - यह संसार क्रूर कालचक्र के बीच में फंसा हुआ है। जरा और मृत्यु से घिरा हुआ है। ऐसे में जीवन का क्या भरोसा है ? (गा. ९-२३ )
३६ १४ (१) पुत्रों को गृहत्याग कर जाते देखकर भृगु पुरोहित ने पत्नी यशा से कहा - सांप जैसे कैंचुली को छोड़कर, मत्स्य और हंस जैसे जाल को काटकर बंधन मुक्त हो जाते हैं, वैसे ही हमारे पुत्र बंधन मुक्त होकर जा रहे हैं। अब हम पंख कटे पक्षी की तरह, शाखाहीन वृक्ष की तरह घर में रहकर क्या करेंगे ? (गा. २९-३७) (२) रानी कमलावती ने देखा - चारों प्राणी विरक्ति के पथ पर चल पड़े हैं और उनका परित्यक्त धन, राज-भंडार में आ रहा है।
३७ १४ (१) राजा को समझाते हुए रानी बोली- राजन् ! इच्छाएँ आकाश के समान अनन्त हैं । यदि तीन लोक का सम्पूर्ण वैभव मिल जाये तब भी इच्छाएँ कभी तृप्त नहीं हो सकती। इस घर में मेरी स्थिति वैसी ही है जैसे पिंजरे में पक्षिणी की। (२) जिस गिद्ध के पास मांस का टुकड़ा होता हैं उस पर दूसरे पक्षी झपटते हैं। जिसके पास मांस नहीं है उस पर कोई नहीं झपटता। संसार में काम-भोग के लिए ही छीना-झपटी होती है। ( ३९-४९)
३८ १६ दस समाधि स्थानों से संरक्षित दुष्कर ब्रह्मचर्य व्रत का पालन करने वाले मुनि को देव, दानव, गन्धर्व, यक्ष, राक्षस, किन्नर, चक्रवर्ती सम्राट आदि सभी नमस्कार करते हैं। ( गाथा १० - १३-१६ )
• ३९ १७ पाप श्रमण : सिंह वृत्ति से प्रव्रजित होकर जो सुख-शीलता के कारण शृगाल वृत्ति धारण कर मनचाहा खा-पीकर सोता है, वस्त्र - पात्र का संग्रह करता है, लोगों के साथ गप-शप मारता है वह अविवेकी, रस-लोलुप, पापश्रमण कहलाता है। (गा. १-३ )
४० १८ काम्पिल्य नगर का राजा संजय अपने दल बल के साथ शिकार करने निकला। भयत्रस्त हिरणों के
पीछे दौड़ता हुआ राजा केशर उद्यान के लता मण्डप में पहुँच गया। वहाँ एक ध्यानस्थ मुनि के पास घायल हिरणों को देखकर राजा भयभीत हो उठा; हो न हो; ये हिरण मुनि के ही हैं। अज्ञान में हुए अपराध के लिए राजा मुनि से क्षमा याचना करने लगा । (गाथा १-७)
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org