Book Title: Agam 18 Upang 07 Jambudveep Pragnapti Sutra Part 01 Sthanakvasi
Author(s): Kanhaiyalal Maharaj
Publisher: Jain Shastroddhar Samiti Ahmedabad

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Page 4
________________ ५९ भरत चक्रवर्ती के गमन के बाद उनके अनुचर वर्ग के कार्यका निरूपण- ५४८-५६८ ६० अष्टाहिका समाप्त करके आगेके कार्य का निरूपण ५६८-५८४ ६१ भरतचक्रीके स्नानादिसे निवृत्त होनेके अनन्तर कार्यका निरूपण ५८४-५९८ ६२ मागधतीर्थाधिपतिका भरतचक्री को भेटप्रदान का निरूपण ६३ भरतचक्रीका वरदामतीर्थ के प्रतिगमनका निरूपण ६१०-६१९ ६४ वर्दकीरत्नको आवसथादिबनानेकी आज्ञा करने पर वर्द्ध कीरत्न के कौशल्यका वर्णन- ६१९-६२७ ६५ रथवर्णन पूर्वक भरत महाराजा के रथावरोहणका निरूपण ६२७-६४३ ६६ सिंधूदेवी को साधने का निरूपण ६४३-६५४ ६. वैताढयगिरिकुमारदेव के साधने का कथन ६५४-६६३ ६८ सुषेणसेनापति के विजय का वर्णन ६६३-६८८ ६९ तमिस्रा गुहा के द्वार को उद्घाटन करने का निरूपण - ६८८-७२१ ७० उन्मग्न निमग्ननाम को महानदी के जलाशयका निरूपणएवं उत्तराधभरत जितनेका निरूपण ७२१-७४० ७१ भरत महाराजाके सैन्यको स्थितिका कथन ७४०-७५९ ७२ आपातचिलातके देवों के उपासना का निरूपण ७६०-७७२ ७३ वर्षा हो जाने के बाद भरतमहाराजा के कार्य का वर्णन ७७३-७८० ७४ भरतमहाराजाके सैन्य को स्थिति का वर्णन - ७८१-७८८ ७५ सातरात्रि के बादका वृत्तांत वर्णन ७८९-८०६ ७६ उत्तरदिशाके निष्कूटजितनेका एवं ऋषभकूट को जितनेका वर्णन ८०६-८२० ७७ नमी एवं विनमी नामके विद्याधरों के विजयका वर्णन ८२०-८३४ ७८ भरत महाराजा के दिग्यात्रा तथा दक्षिणार्ध में भरत के कार्यका वर्णन ८३४-८६५ ७९ राज्यों के जितने के बादका भरतमहाराजा-के कार्य का वर्णन ८६५-८८९ ८. अपनी राजधानी में आये हुए भरत महाराजा के कार्य का निरूपण - ८९०-९०८ ८१ भरतमहाराज के राज्याभिषेक विषयका निरूपण ९०९-९५७ ८२ भरतमहाराजाके रत्नोत्पत्ति के स्थान का निरूपण ९५७-९५९ ८३ छहोंखंडों के पालन करते हुए भरतमहाराजा को प्रवृति करने का निरूपण- ९५९-९७७ ८४ प्रकारान्तर से भरतनामकी अन्वर्थताका कथन ९७८-९८० समाप्त Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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