Book Title: Agam 13 Upang 02 Rajprashniya Sutra Shwetambar
Author(s): Rai Dhanpatsinh Bahadur
Publisher: Rai Dhanpatsinh Bahadur

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Page 18
________________ ¿ रायपणी । धित्व परममानुद्धहनशीलता, अर्धधम्माभ्यासानमेतत्व अथधम्मं प्रतिवडता उदारत्वमतिशिष्टगु फगुपयुक्तता अन्यस्वार्थप्रतिपादकता वा, परनिन्दात्मोत्पविप्रमुक्तत्व प्रतीत, उपगतश्लाघत्व उक्तगुणयोगत प्राप्तश्लाघता, चनपनीतत्व कारकालावचन लिगादिव्यत्यय रूपवचनदोषा पेतवा, उत्पादितोविकिन्नकोतूहलत्व श्रोतॄणा स्नविपयैउत्पादित जनितमविकिन्न कौतूहल तत्वमनति कौतुक येन तत्तया तद्वावस्तत्व श्रीतृपुंस्तविषयादद्भुतविम्मयकारितेतिभा, विनम्र मनीत विभुमविचेपकिलिकिञ्चितादिवियुकत्वमिति विभुमीवक भान्तिमनस्कता विक्षेपोवळ देवाभिधेयार्थ प्रत्यनामकता किलिकिञ्चित रापभयाभिलापादिभावाना युगपदमकृत् अनेकजाति आदिशब्दात्मदीपान्तरपरिग्रह तैविमुक्त यत्रतया तद्भावस्तत्यम्, करणस, साचित्व सर्वभापानुव्यापित चिवरूपता । हितविशेषत्व पुरुपवचनापेचया त्रिष्युत्पादितमतिविशेषता, साकारत्व विभिन्नपदवाक्यता, सत्वपरिगृहीतत्वमोजस्विता, अपरिखेदित्व मनायासमम्भवता श्रत्यवदित्व विवचिताथ सम्यक् सिद्दियावदविविच्छिन्नवचन प्रममेयतेति । "आगासकालि नामान्नि आकागस्फटिक यदाकाशवत् अतिस्वतस्फटिक तन्मयेन। “धम्मब्मएयन्ति” धर्मचक्रवर्त्तित्वमूचकेन केतुना महेन्द्रध्वजेनेत्यर्थ । तथा "पुव्वाणु पुच्चिरमा" इति पूर्वानुपूव्याक्रमेणेत्यथ । चरन् सञ्चग्न् एतदेवाह, "गामा, गाम टूइज्ममाये" इति ग्रामश्चानुग्रामश्च विवचितग्रामानन्तरग्रामी ग्रामानुग्राम त द्रवन् गच्छन् एकस्मात् चनन्तर गुमिमनुलध्धयन् । अनेनाप्रतिवsविहारितास्यापिता तत्राप्यत्सुक्याभावमाह । ‘मुहमुहेा विहरमाग" सुख सुखेन प्राग्येदाभावेन सयमाबाधाभावेन च विहारेण वा ग्रामारिषु विहरन् प्रवितिष्ठमानो “जेणेवति" प्राकृतत्वा त्सप्तम्यर्थं तृतीया, यस्मिनैव देशे आमल कल्पानगरी, यस्मिन्नं च प्रदेशे वनपण्डी, यस्मिन्नेव देशेमोऽनन्तरोक्तस्वरूप शिलापट्टक, “तयामेवेति तस्मिन्नेव उपागच्छति । उपागत्य च यथा प्रतिरूप यथोचित मुनिजनस्याव गुदमावास अनुनापनापूर्वकमवगृह्णाति श्रवग्रहश्वाशीकवरपादपस्याध पृथिवीशिलापट्ट के पूर्वाभिमुख तीथकृती हि भगवन्त सदा ममवसरणे पृथिवी शिलापट्टके वा देशनाये पृत्वाभिमुखा वतिष्ठते, मपय कनिपयख मयमेन तपसा चात्मान भावयन् विहरति चारते, तत पर्पनिमम्मी" वाच्य' सा चैव, “तएग ग्रामलकप्पाए नयीए सिघाडगतिय च उक्कञ्चच्चरच डम्मुह महापपदे बहुजणी चन्नमन्नम्मएवनाडक्छ। एव भासद् एव परुवेड एवं पत्त एव खलु देवागुपिया मम भगवम्महावीरे जाव चागासगए कत्र्त्तेय नावमज्जमेण नवसा अध्याय भावे माहिर । त महाफल मनु देवागुप्पियाण ताहारुवाण अरहन्ताय नामगोयविभवद्यथा एकिमभापुरा अभिगमय वन्दण नर्म नवपडिपुण्त्रभुवासगवाए त सय खनु एगमविभावरियम धम्मियस्म सुवयवम्म सवगवाए किमका पविडला अस्स गहण याए त गच्छामीण देवागुप्रिया समय भTवम्महावीर बन्यामी यमसामीसक्कारमसम्माणमोक ड # " ૨૭ +

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