Book Title: Agam 13 Upang 02 Rajprashniya Sutra Shwetambar
Author(s): Rai Dhanpatsinh Bahadur
Publisher: Rai Dhanpatsinh Bahadur

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Page 16
________________ गजपणी । तेरा काले तेण समयेण । १५ पृषोदरादय इत्यसकारलोपे उपपेता इति द्रष्टव्यम् । “माणुम्मागपमा पडिपुन्नसुजात सव्वष्ण सुन्दरी" इति तवमान जलद्रीयप्रमाणता कथमिति चेत् उच्यत, जलस्थाति भृते कुगडे पुरुष स्त्रिया वा निवेशिताया यज्जलन्निस्सरतितद्यदिद्रोणप्रमाण भवति तदा स पुरुष स्त्रीवा मानप्राप्ता धच्यते, तथा उन्मान श्रई भारममागता सा चैव तुलायामारोपित पुरुष स्वीवायभार तुलति तदा स उन्मानप्राप्ताभिधीयते । प्रमाणस्वागुलेनाष्टोत्तरशतीवृयिता ततीमानीन्मानममा प्रतिपूर्णान्यनूनामुजातानि जन्मदी परहितानि सव्वाणि यानि पिर प्रभृतीनि यानि ते सुन्दरागीमानीन्मानप्रमा प्रतिपूर्णमुजातसवीगसुन्दरी । तथा शशिवत्सीमाकारमरौद्रकार कान्त कमनीय प्रिय दुग्रामानन्दोत्पादक दर्शन रूप यस्या सा गरिसीमाकारकान्तप्रियदर्शना, अतएव सुरूपा, तथा करतलपरिमिती मुष्टिग्राद्य प्रशस्तलक्षणोपेत विवलिको वलिवयोपेतो रेस्रावयोपेती वलिकोवलवा न्मध्यीमध्यभागी वस्या सा करतलपरिमितप्रशस्तम्बिवलीकवलिकमध्या । तथा कुण्डलाभ्यामुल्लिखिता स्पृष्टा गण्डलेखा कपोलविरचितमृगमदादिरेखा यस्या सा कुण्डलील्लेखितगण्डलेख । “कोमुहरयग्गिंग रविमलपडिपुन्नसीमवयया" की मुटीकार्त्ति की पोर्णमासी तरया रजनीकरचन्द्रात विमल निर्भनं प्रतिपूर्ण मन्यूनातिरिक्तमान सोममरीद्राकार वदन यस्या सा तथा । शृष्णाारस्य रसविशेपस्यागारमिवागार अथवा गृष्गारीमण्डन भूप पाटीपरतत्प्रधान आकार आकृतिर्यस्या' मा तथा । तथाचारुवेगो नेपथ्योयस्या' सा तथा तत कर्मधारय शृङगारागार चारुवेगा । तथा खाता ये गतमितभणितचेष्टितविलासा यश्च निपुगोयुक्तश्च जनपरजनान् प्रत्युपचारस्तेषु कुगला मधतगतइसितभणितचेष्टितविलासललितसलापनिपुणयुक्रोपचारकुशला, तव सधात नासयात यातना गृहस्यैवान्तर्गमन नतु बरि स्वेच्छाचारितया । सगत हमित यत् कपीलविकाशमात्र सूचितनत्वदृट्टामादिहसित । “कपोलकहिय” मिति वचनात् सगत भूपित यत्समागते प्रयोजने मर्मभणित परिहारेण विवचितार्थमात्प्रतिपादनसंगतचेष्टित यत्, कुचजघनाद्यवयवाशदनपरतयोपवेशनगयनीत्यानादि सस्तो विलास स्वकुलौचित्येन शृष्णारादिकरणं, तथा सुन्दर स्तनजवनवदन करचरणनयनलावण्यविलासे कलिता । धव विलास स्थानासनगमनादिरूपरचेष्टाविशेष । उक्तञ्च । स्यानासनगमनाना हस्त भूनेव कर्मणाचैव पद्यते विशेष ग्लिप्टोसी विलास स्वात । अन्येला विचासी नवजोविकार स्तथाचीत सुखविकारस्थान भावविचत्तममुत्र विलासी नेवजाज्ञेयी विश्मीभू समुद्र' । नया कालेगा तेथे ममय) सनो भगवम्मदावीरे जावचीत्तीमे बुद्धाययातिकेस सम्पमतीस सच्ववयाति मयत सामगण चक्जेण श्रागास गणगण्य छतंय यागासगवाहि संयवरचामराहि जेनी अवसतिचामलकप्पाइपधारीय कालीचयाचाराने उ

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