Book Title: Agam 13 Upang 02 Rajprashniya Sutra Shwetambar
Author(s): Rai Dhanpatsinh Bahadur
Publisher: Rai Dhanpatsinh Bahadur
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रायपसपी। भागासफानिह मरण स पायपीठेश सीहासणेण पुरती धासभएण पगडिझमाग्रेञ्च उपसहि समशसाहस्सीहि छत्तीसाए अभियासाहसीहि सडिसम्परिबुडे पुत्राणुपुलिञ्च रमाणे गामागु गाम दुइझमानेमुड मुहेण शहरमाणे जेशवयामलवारपानवरी नेणेवअम्बसालवणेचेइए जेय व वडे जेणेव यतीरावरपाववे येणेव पुढविसिलापट्टए संगणेव उवागच्छद २ आहापडिरूव उगृह उगिराइ इउगिरिहत्ता असोगवस्पायवस्स शाह पुटविसिलापहामिपुरस्थाभिमुहे सम्पलिय कनिसान मजमे तवसा अप्पाशभावमागविहरदू'। इद सुगमनवर "जावचोचीसाए' इत्ययावत्करणात "पार कतित्थगर" इत्यादिक समस्तीपि अपपातिक गन्थप्रसिद्धी नगवर्णकोवाच्या, सवातिगरीयानिति न लिख्यते केवल गोषपातिक्षगन्यादिवमेवः। चीत्तीसाएजुड़वयणातिसेससम्पत्ते इति चतुग्विशदुहाना भगवतामहता वचनपमुखा' सर्वग्वभाषानुगत वचन। धम्माववोधकरमित्यादिना उक्तस्वरूपा ये अतिशेषा तिगया स्तान प्राश्चतुस्विगटबुडवचनातिशेपम्योपादानमत्यन्तोपवारितया प्राधान्यख्यापनाथ मन्यथादेवेमत्यादयम्तेपव्यात, तघाच देहविमलसुगन्ध आमयपासेयवभिाव अरवन्। महिर गोखोराभनिव्वीसपडरम्मस” मित्यादि, 'पणतीसाएमत्ववययातिर्सससपत्ते" पञ्चवि शर ये सत्य वचनस्यातिशेपा अतिशवारतात मरणाप्त पञ्चति शासत्यवचनातिशेष सम्प्रात, ते चामीसत्यवचनानिशेया', सस्कारवत्व १, टात्तत्व २, उपचारोपितलब ३, गम्भीर शनत्व ४, अनुमादित्व ५, दक्षिणत्व , उपनीतरागत्व ७, मत्यर्थीव ८, यध्याहतपूर्वापराव ८, गिदत्व १०, असन्दिग्धत्व ११, अयहतान्यो त्तरत्व १२, हृदयगाहित्य १३, दंगकालाव्यतीतत्व १४, तत्वानुरूपख १५, अप्रकीमाप्रमृतत्व १६, अन्योन्यप्रगृहीतब १७, अभिजातत्व १८, अतिस्निग्धमधुरव १८, अपरमर्मबंधितत्व २०, अर्थधमाभ्यासानपेतत्व २१, उदारव २२, परनिनामीत्की वनमुक्ताव २३, उपगतश्लाघव २४, अनपनीतत्व २५, उत्पादितीविच्छिन्नकौतूहलत्वम २६, रहतत्व २७, अनतिविलम्बित्व २८, विभुमविक्षेपकिलिकिञ्चितादिवियुकत्व २८, अनेकजातिसथया. हिचिवत्व ३०, हितविशेवरव ३१, साकारत्व ३२, सत्वपरिगृहीतत्व ३३, अपरिखेदितत्व ३४, अव्यवदितत्व ३५, “चिति" तन सस्कारवव सस्कृतादिलक्षणयुतत्व , उदात्तत्व उर्वत्तिता, उपचारोपेतत्वमगाभ्यता, गम्भीरशब्दाव मेघस्यैव, अनुनादिता प्रतिरवोपेतत्व , दक्षिणाव सरलता, उपनीतरागग्य उत्पादित श्रोतृजनस्वविषय बहुमानता, एते सप्तभन्दपेक्षा अतिशया यत ऊईन्यायया । तब महाल परिपुष्टाथाभिधायिता, अन्याहतपौवापर्यंत पूर्वापरवाक्याविरोध, गिटाव वा भिष्टत्वमूचनात, असन्दिग्धत्व परिस्फुटार्थप्रतिपादानात, पहतान्योत्तरत्व पर दूपणाविषयता इदयगाहिल टुगमस्याप्यर्थस्य पर हत्यप्रवेगकरण, देशकालाव्यतीतत्व प्रस्ता वोचिता, तत्वानुरूपद विवक्षितवस्तुस्वरूपानुसारिता, अप्रकीर्गप्रस्ताव साबधाधिकारपरिमिनता, बन्यो यमगृहीततत्व पदाना वाक्याना वा परस्पर सापेक्षता, अभिजातत्व यथाविधि तायाभिधानगीलता, अतिस्निग्धमपुरत्व बुभुक्षितस्य धृतगुडादिवत्परमसुखकारिता, अपरमर्म

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