Book Title: Agam 13 Upang 02 Rajprashniya Sutra Shwetambar
Author(s): Rai Dhanpatsinh Bahadur
Publisher: Rai Dhanpatsinh Bahadur

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Page 20
________________ रावपसेगी। सत्तहि अणियाहिवईहि सोलसहि आयरक्खदेव साहस्सीण २ अन्नहियर बहुहि सूरियाभ विमाण वासीण ४ वेमाणीएहि देव देवीहियः सद्धि सपरिखुड़े महयाहव नट्टगीयवाईयः ततीतल भीगाय ते सप्तभिरनीकै अनीकानिस्वस्वाधिपतिव्यतिरेकेण न सम्यक् प्रयोजने समापतिते सत्युप* कल्पन्ते तत सप्तानीकाधिपतयोपितस्य वैदितस्य वेदितव्याः । तथाचाह, (मत्तष्टि ग्रणियाहिवरहि) पोडगभिरात्मरचदेवसहमेरिति विमानाधिपते मुयाभस्य देवस्यात्मान रक्षयन्तीत्यात्मरक्षा, कर्मणोणित्यण् प्रत्यवः। तेच शिरस्वाणकल्पा यथाहि गिरस्त्राण शिरस्वाविप्राणरक्षक भवति तथालेप्यात्मरक्षका गृहीतधनुर्दण्डादिप्रहरणा समन्तत सप्तानीकाधिपतेरगुतश्चावस्थायिनोविमानाधिपते सूर्याभस्वदेवस्य प्राणरक्षका) देवानामपायाभावात् तेपा तथागृहणपुरम्सरमवस्थान निरर्थकमिति, "वेत्तरण" स्थितिमानपरिपालन हेतुत्वात् प्रीतिप्रकर्षहेतुत्वाच्च, तथाहि ते समन्तत सवासुदिक्षुगृहीताहरणा अईस्थिता अवविष्टमाना स्वनायकशीररक्षणपरायणा', स्वनायकैकनिपरणदृष्टय' परेपामसहमानानां चोभमुत्पादयन्ती जनयन्ति, स्वनायकस्य पराप्रीतिमिति एतेच नियतमख्याका', मूर्याभस्य देवस्यपरिवारभूता देवा उकाये तु तस्मिन् मूबाभरिमानपौरजनपदस्थानीया येत्वाभियोग्यादासकल्पा स्तेऽतिभूयास' प्रास्थानमएडल्यामपि चानियतसस्याका इति तेषा सामान्यत उपादानमाह । (पन्नेहि बहुहियसूरियाभविमाणवासीहि देवीहि देवीहिय सहि सपरिडे) एते सामानिकप्रभृतिमि साई सपरिवृतसम्यक् नायकैकचित्ताराधनपरतया परि वृत। (महयाइये) त्यादि, महतारवणेतियोग', अहय इति आख्यानकातिवद्वानीतिवृद्धा', अथवा घहतानि अव्याहतानि अक्षतानि इति भाव । नाटयगीतवादितानिच तन्वी वीणा तलाहस्तताला ताम' कसिका बुटितानि शेपत्याणि तथाघनोधनसदृशीध्वनि साधम्यात्, योमृदंगोमईल' पटना सातपरिषदासहित सातकटकनाधणीसाधतेकेहागधर्व नाटिकर हाधीश्घोडारिय५ महितपदातिर रपभ७ सीलदसद यात्मरक्षक देवतासहस्रसायद अनेरइयाइ घणद मूयाभ विमान वासीई विमानसबधी देवदू देवीद साथ परवडाउथकउ मोटसब्द निर तरनाटिक गीत बनाडा वीणा हाथोडा कासी बीजाधणावाजिन्न मेघसन्दसरीया मादल डाहपुरुपद् वजाडीजवाजिव तेहनदूसब्दैकरीसहित प्रधान भोगविवायोग्यजेह भोगपद्रियनाविपयप्रतभीगवतुथकु विचरकर १। सतहि अगियादि वदि , सतदि अयि रहि सत्तहि अणियादिवईण। २। आयरवदेव साहस्त्रीण, आयरक्वदेवमास्नीदि। । पहिय, अनेहि । ४। वासीण , वासीदि । । माणिपहि वेमाणीहि । । देव देवीडिय, देवहि देवीहिय, देवीरि देवीडिय। । सधि मपरिवुई, मिति मपरिवडे, सद्धि सपरियुड़े। ८। मध्या इय, महता मध्य। ।। महगीय पाईय, पहगीयवारय ।

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