Book Title: Agam 12 Upang 01 Auppatik Sutra Stahanakvasi
Author(s): Madhukarmuni, Kanhaiyalal Maharaj, Devendramuni, Ratanmuni
Publisher: Agam Prakashan Samiti

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Page 8
________________ प्रकाशकीय अभी तक आगम बत्तीसी के नवीन सुबग्रन्थों के साथ अनुपलब्ध सूत्रों के प्रकाशन और पुनर्मुद्रण का कार्य साथ-साथ चलता रहा है। इस समय में अनेक सूत्रों का पुनर्मुद्रण हुआ। अब प्रौपपातिक सूत्र से अनुपलब्ध सूत्रों के पुनर्मुद्रण का कार्य प्रारम्भ हो रहा है / व अंग प्रागमों में प्राचारांगसूत्र प्रथम है, और प्रौपपातिकसूत्र उसका उपांग है। अतएव उपांग के क्रम में इसे भी प्रथम माना जायेगा। उपांग होते हुए भी इसका एक विशिष्ट स्थान है। इसका पूर्वार्ध कथाप्रधान है, किन्तु तद्गत वर्णन मूल आगमों का पूरक है। उन आगमों में उल्लिखित नगर, चैत्य, वनखण्ड, राजा, रानी, अनगार आदि के वर्णन को जानने के लिये 'वण्णमो' लिखकर इस सूत्र का प्रतिदेश किया जाता है। अर्थात् इन सबका वर्णन औपपातिक सूत्र के वर्णन के अनुसार कहना चाहिये। यह वर्णन अलंकारों और कोमल कान्त पदावली से इतना समृद्ध है कि पाठक इस वर्णन से यथार्थ की अनुभूति करता है। सारांश यह कि इस सूत्र का अध्ययन किये बिना अन्य कथासूत्रों का अध्ययन अपूर्ण ही रहता है। उत्तरार्ध के वर्णन में विभिन्न प्रकार की परिव्राजक परम्पराओं का उल्लेख है, जो भारत के विभिन्न मतानुयायियों का प्रतिनिधित्व करती हैं। ये भारत के धार्मिक व सांस्कृतिक इतिहास लेखकों एवं अन्वेषकों को पर्याप्त सहायक सिद्ध हुई हैं। सारांश यह कि पीपपातिक सूत्र एक साहित्यिक कृति होने के साथ-साथ विभिन्न धार्मिक प्राचार परंपराओं का इतिहास भी है। प्राचीन भारत की गौरव गाथा का अंकन करने वालों के लिये उपयोगी मार्गदर्शक सहयोगी बन सकता है। पागमों के प्रकाशन की योजना के कारणों पर महामहिम स्व, युवाचार्य श्री मधुकर मुनिजी म. ने अपने 'प्रादिवचन' में विस्तृत प्रकाश डाला है। अतः पुनः कारणों का उल्लेख नहीं करते हैं। समिति तो इसी में गौरवानुभूति करती है कि उनका बोया बीज विशाल वटवृक्ष की तरह विस्तृत होता जा रहा है। यहां यह भी स्पष्ट कर देना उपयोगी होगा कि समिति द्वारा आगमों के प्रकाशन में प्रार्थिक लाभ पक्ष गौण है। इसीलिये प्रथम संस्करण के प्रकाशन में लागत से कम मूल्य रखा गया था और उसी नीति के अनुसार द्वितीय संस्करण के ग्रन्थों का मूल्य निर्धारित किया जा रहा है। समिति का उद्देश्य यही है कि सभी ग्रन्थ-भण्डारों एवं पाठकों को ग्रन्थ उपलब्ध हो जायें। अन्त में अपने सभी सहयोगियों के आभारी हैं कि उनकी प्रेरणायें समिति को आगमों के द्वितीय संस्करण प्रकाशित करने के लिये प्रेरित कर रही हैं। इति शुभम् / रतनचन्द मोदी कार्यवाहक अध्यक्ष सायरमल चोरडिया महामंत्री श्री आगमप्रकाशन समिति, पीपलिया बाजार, ज्यावर-३०५९०१ अमरचन्द मोवी मंत्री [7] Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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