Book Title: Agam 06 Ang 06 Gnatadharma Sutra Part 02 Sthanakvasi Author(s): Amarmuni, Shreechand Surana, Surendra Bothra, Purushottamsingh Sardar Publisher: Padma Prakashan View full book textPage 5
________________ 34343 प्रकाशकीय इस संसार में बुद्धिमान् और विद्वान् तो हजारों-लाखों मिलेंगे, परन्तु ज्ञानी बहुत कम मिलेंगे। ज्ञानी होने का मतलब है - जीव और जगत् के प्रति संतुलित ज्ञान तथा आत्मा-परमात्मा, जड़-चेतन, अध्यात्म और विज्ञान की सही समझ और सही वर्तना । वही संतुलित जीवन जी सकता है और दूसरों को भी जीवन की संतुलित शैली सिखा सकता है। धर्मशास्त्र ज्ञान देता है, जीवन जीने की कला सिखाता है। इसलिए हम धर्मशास्त्र को कोरी पुस्तक या ग्रन्थ नहीं कह सकते, वह शास्त्र है और शास्त्र जीवन पर, मन पर शासन करने वाला होता है। इसलिए वह मानव का तृतीय नेत्र है। आज की भाषा में शास्त्र इंसान का ज़मीर है, आत्मा का विवेक है। और इसीलिए शास्त्र-स्वाध्याय का अपना खास महत्त्व है। उ. भा. प्रवर्त्तक गुरुदेव भण्डारी श्री पद्मचन्द्र जी महाराज सतत शास्त्र- स्वाध्याय की प्रेरणा देते रहते हैं। धर्मशास्त्र घर-घर में पहुँचें, पढ़े जायें, उनका स्वाध्याय हो-यही उनकी हार्दिक इच्छा है, जीवन की बहुत बड़ी अभिलाषा है। इसलिए वे पिछले तीस से अधिक वर्षों से सतत प्रेरणा एवं प्रचार करते रहे हैं। शास्त्र प्रकाशन के क्षेत्र में उनकी प्रेरणा एवं मार्गदर्शन से लगभग ३५ लाख रुपए से अधिक का साहित्य अब तक प्रकाशित/प्रचारित भी हो चुका है। यह हमारे लिए गौरव और प्रेरणा की बात है। गुरुदेव श्री के प्रधान शिष्य, विद्वद्रत्न और प्रबल धर्म प्रचारक, प्रवचन भूषण उपप्रवर्तक श्री अमर मुनि जी महाराज इस दिशा में बड़े उत्साह और निष्ठा के साथ प्रयत्न कर रहे हैं। आपश्री के प्रयत्नों से पहले श्री प्रश्नव्याकरणसूत्र ( दो भाग), श्री सूत्रकृतांगसूत्र ( दो भाग), भगवतीसूत्र (चार भाग) हिन्दी व्याख्या सहित प्रकाशित हुए। फिर आपश्री ने आगमों के सचित्र प्रकाशन की योजना पर कार्यारम्भ किया, जिसके अन्तर्गत अब तक अन्तकृद्दशासूत्र, उत्तराध्ययनसूत्र, कल्पसूत्र, तीर्थंकर चरित्र एवं ज्ञातासूत्र (प्रथम भाग) प्रकाशित हो चुके हैं। अब ज्ञातासूत्र का द्वितीय भाग पाठकों के हाथों में है। हम चाहते हैं चित्रों में रुचि लेकर पाठक इन शास्त्रों का स्वाध्याय करें। चित्रों के कारण कठिन विषय भी सरल बन जाने के कारण उन्हें समझने में भी सुविधा रहेगी। Jain Education International (5) For Private Personal Use Only www.jainelibrary.orgPage Navigation
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