Book Title: Agam 06 Ang 06 Gnatadharma Sutra Mool Sthanakvasi
Author(s): Sudharmaswami, Devardhigani Kshamashaman
Publisher: Global Jain Agam Mission

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Page 97
________________ ज्ञाताधर्मकथा ५६ तए णं तेसिं अरहण्णगपामोक्खाणं संजत्ता-नावावाणियगाणं लवणसमुदं अणेगाइं जोयणसयाई ओगाढाणं समाणाणं बहूइं उप्पाइयसयाई पाउब्भूयाइं तं जहा- अकाले गज्जिए, अकाले विज्जुए, अकाले थणियसद्दे, अभिक्खणं अभिक्खणं आगासे देवयाओ णच्चंति, एगं च णं महं पिसायरूवं पासंतितालजंघं दिवंगयाहिं बाहाहिं मसिमूसगमहिसकालगं, भरिय-मेहवण्णं, लंबोटुं, णिग्गयग्गदंतं, णिल्लालिय-जमल-जुयल-जीहं, आऊसिय-वयण-गंडदेसं, चीण-चिपिट- णासियं, विगयभुग्गभुमयं, खज्जोयग-दित्तचक्खुरागं, उत्तासणगं, विसालवच्छं, विसालकुच्छिं, पलंबकच्छिं, पहसिय-पयलिय- पयडियगत्तं, पणच्चमाणं, अप्फोडतं, अभिवयंतं, अभिगज्जंतं, बहुसो बहसो य अट्टहासे विणिम्मयंतं णीलुप्पल-गवल-गुलियअयसिकुसुमप्पगासं खुरधारं असिं गहाय अभिमुहमावयमाणं पासंति । [तए णं ते अरहण्णगवज्जा संजत्ताणावावाणियगा एगं च णं महं तालपिसायं पासंतितालजंघ, दिवंगयाहिं बाहाहिं फुट्टसिरं भमर-णिगर वरमासरासि महिसकालगं भरिय मेहवण्णं सुप्पणहं फालसरिस- जीए, लंबोटु, धवल वट्ट असिलिट्ठ-तिक्ख- थिर-पीण-कुडिलदाढोवगूढवयणं, विकोसिय-धारासिजुयल-समसरिस-तणुय-चंचल-गलंतरसलोल-चवलफुरुंफुरंत-णिल्लालियग्गजीहं अवयत्थिय-महल्ल-विगय-वीभच्छ-लालपगलंत-रत्ततालय हिंगुलुय- सगब्भकंदरबिलं व अंजणगिरिस्स, अग्गिजालुग्गिलं- तवयणं आऊसियअक्खचम्म- उट्ठगंडदेसं चीण-चिमिढ-वंक-भग्गंणासं, रोसागय-धम- धर्मत- मारुय-णिहुरखर- फरुसझुसिरं, ओभुग्ग-णासियपुडं घाडुब्भड-रइय-भीसणमुहं, उद्धमुहकण्ण- सक्कुलियमहंतविगय-लोम- संखालग-लंबंत-चलियकण्णं, पिंगलदिप्पं- तलोयणं, भिउडि-तडियणिडालं णरसिरमाल-परिणद्धचिंधं, विचित्तगोणस-सुबद्धपरिकरं अवहोलंत-पुप्फुयायंत सप्प-विच्छुयगोधुंदर-णउ ल सरड-विरइय-विचित्त- वेयच्छमालियागं, भोगकूरकण्हसप्पधमधमेतलंबंतकण्णपूरं, मज्जार-सियाल-लइयखंधं, दित्तघुघुयंतघूय- कयकुंभरसिरं, घंटारवेणं भीम, भयंकर, कायरजणहिययफोडणं, दित्तं अट्टहासं विणिम्मुयंतं वसा-रुहिर- पूय-भस-मल-मलिण-पोच्चडतणुं उत्तासणयं, विसालवच्छं पेच्छंता भिण्णणहमुह- णयण- कण्णं वरवग्ध-चित्त-कत्ती-णिवसणं, सरस-रुहिर-गयचम्म- वितत-ऊसवियबाहुजुयलं ताहि य खर-फरुस- असिणिद्ध- अणिट्ठ-दित्त- असुभ-अप्पिय-अकंत-वग्गूहि य तज्जयंतं पासंति। तए णं ते अरहगवज्जा संजत्ता-णावावाणियगा तं तालपिसायरूवं जाव भिमहमावायमाणं पासंति, पासित्ता भीया संजायभया अण्णमण्णस्स कायं समतुरंगेमाणा बहूणं इंदाण य खंदाण य रूद्द-सिव- वेसमण-णागाणं भूयाण य जक्खाण य अज्जकोट्ट- किरियाण य बहूणि उवाइयसयाणि ओवाइयमाणा चिट्ठति । गा

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