Book Title: Agam 06 Ang 06 Gnatadharma Sutra Mool Sthanakvasi
Author(s): Sudharmaswami, Devardhigani Kshamashaman
Publisher: Global Jain Agam Mission

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Page 176
________________ १२९ | १३० | १३१ १३३ ज्ञाताधर्मकथा |१३४| उवणेह तहेव जाव उवर्णेति । तए णं वासुदेवपामोक्खा बहवे राया ण्हाया जा विउलं असणं पाणं खाइमं साइमं तहेव जाव विहरति । तए णं पंडुराया पंच पंडवे दोवइं च देवि पट्टयं दुरुहावेइ, दुरुहावेत्ता सेयापीएहिं कलसेहिं ण्हावेइ, ण्हावित्ता कल्लाणकरं करेड़, करित्ता ते वासुदेवपामोक्खे बहवे रायसहस्से विउलेणं असण-पाण- खाइम साइमेणं पुप्फ-वत्थेणं सक्कारेइ सम्माणेइ, सक्कारित्ता सम्माणित्ता जाव पडिविसज्जेइ । तए णं ते वासुदेवपामोक्खा बहवे रायसहस्सा जाव पडगया । तए णं ते पंच पंडवा दोवईए देवीए सद्धिं कल्लाकल्लिं वारंवारेणं ओरालाई भोगभोगाई भुंजमाणा विहरंति । १३२ इमं च णं कच्छुल्लणारए-दंसणेणं अइभद्दए विणीए अंतो अंतो य कलुसहियए मज्झत्थोवत्थिए य अल्लीणसोमपियदंसणे सुरूवे अमइल - सगल - परिहिए कालमियचम्मउत्तरासंग-रइयवत्थे दंड - कमंडलु हत्थे जडामउडदित्तसिरए जण्णोवइय- गणेत्तिय-मुंजमेहलावागलधरे हत्थकय-कच्छभीए पियगंधव्वे धरणिगोयरप्पहाणे; संवरणावरणिओवयणुउप्पयणि-लेसणीसु य संकामणि- अभिओगि- पण्णत्ति-गमणी- थंभिणीसु य बहुसु विज्जाहरीसु विज्जासु विस्सुयजसे; इट्ठे रामस्स य केसवस्स य पज्जुण्ण-पईव-संबअणिरूद्ध-णिसढ-उम्मुय-सारण- गय- सुमुह- दुम्मुहाईण जायवाणं अद्धट्ठाण कुमारको हियय-दइए संथवए कलह जुद्ध - कोलाहलप्पिए भंडणाभिलासी बहुसु य समरेसु य संपराए य दंसणरए, समंतओ कलहं सदक्खणं अणुगवेसमाणे असमाहिकरे; दसारवर-वीरपुरिसतेलोक्कबलवगाणं आमंतेऊण तं भगवई पक्कमणि गगण-गमणदच्छं उप्पइओ गगणमभिलंघयंतो गाम जाव सहस्समंडियं थिमियमेइणीतलं णिब्भर - जणपदं वसुहं ओलोइंतो रम्मं हत्थिणाउरं उवागए पंडुरायभवणंसि अइवेगेण समोवइए । तणं से पंडुराया अण्णया कयाई पंचहिं पंडवेहिं, कोंतीए देवीए, दोवईए देवीए य सद्धिं अंतो अंतेउरपरियाल सद्धिं संपरिवुडे सीहासणवरगए यावि होत्था । तए णं से पंडुराया कच्छुल्लणारयं एज्जमाणं पासइ, पासित्ता पंचहि पंडवेहिं कुंतीए य देवीए सद्धिं आसणाओ अब्भुट्ठेइ, अब्भुट्ठित्ता कच्छुल्लणारयं सत्तट्ठपयाइं पच्चुग्गच्छइ, पच्चुग्गच्छित्ता तिक्खुत्तो आयाहिणं पयाहिणं करेइ, करित्ता वंदइ णमंसइ, वंदित्ता णमंसित्ता महरिहेणं आसणेणं उवणिमंतेइ | तणं से कच्छुल्लणारए उदगपरिफोसियाए दब्भोवरिपच्चत्थुयाए भिसियाए णिसीयइ, णिसीइत्ता पंडुरायं रज्जे जाव अंतेउरे य कुसलोदंतं पुच्छइ । तए णं से पंडुराया कुंति देवी पंच य पंडवा कच्छुल्लणारयं आढंति जाव पज्जुवासंति । 170

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