Book Title: Agam 06 Ang 06 Gnatadharma Sutra Mool Sthanakvasi
Author(s): Sudharmaswami, Devardhigani Kshamashaman
Publisher: Global Jain Agam Mission
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८४
तए णं से दूए करयल जाव कट्टु दुवयस्स रण्णो एयमट्टं विणएणं पडिसुणेइ, पडिणित्ता जेणेव सए गिहे तेणेव उवागच्छइ, उवागच्छित्ता कोडुंबियपुरिसे सद्दावेइ, सद्दावित्ता एवं वयासी- खिप्पामेव भो देवाणुप्पिया ! चाउग्घंटं आसरहं जुत्तामेव उवट्ठवेह। जाव ते वि तहेव उवट्ठवे |
८५
ज्ञाताधर्मकथा
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तए णं से कण्हे वासुदेवे तस्स दुयस्स अंतिए एयमट्ठे सोच्चा णिसम्म हट्ठट्ठा तं दूयं सक्कारेइ सम्माणेइ, सक्कारित्ता सम्माणित्ता पडिविसज्जेइ ।
८८
८७
तए णं से कण्हे वासुदेवे कोडुंबियपुरिसं सद्यावेइ, सद्दावित्ता एवं वयासी- गच्छह णं तुम देवाणुप्पिया ! सभाए सुहम्माए सामुदाइयं भेरिं तालेहि ।
८९
तए णं से दूए ण्हाए जाव अलंकियविभूसियसरीरे चाउग्घंटं आसरहं दुरुहइ, दुरुहित्ता बहूहिं पुरिसेहिं सण्णद्ध जाव गहियाउह-पहरणेहिं सद्धिं संपरिवुडे कंपिल्लपुरं णयरं मज्झमज्झेणं णिग्गच्छइ, णिग्गच्छित्ता पंचालजणवयस्स मज्झंमज्झेणं जेणेव देसप्पंते तेणेव उवागच्छइ, उवागच्छित्ता सुरट्ठाजणवयस्स मज्झंमज्झेणं जेणेव बारवई णयरी तेणेव उवागच्छइ, उवागच्छित्ता बारवइं णगरिं मज्झंमज्झेणं अणुपविसइ, अणुपविसित्ता जेणेव कण्हस्स वासुदेवस्स बाहिरिया उवट्ठाणसाला तेणेव उवागच्छइ, उवागच्छित्ता चाउग्घंटं आसरहं ठवेइ, ठवित्ता रहाओ पच्चोरुहइ, पच्चोरुहित्ता मणुस्सवग्गुरापरिक्खिते पायविहार- चारेणं जेणेव कण्हे वासुदेवे तेणेव उवागच्छइ, उवागच्छित्ता कण्हं वासुदेवं समुद्दविजय- पामोक्खे य दस दसारे जाव छप्पन्नं बलवगसाहस्सीओ करयल तं चेव जाव समोसरह ।
९०
तए णं से कोडुंबियपुरिसे करयल जाव कण्हस्स वासुदेवस्स एयमट्ठे पडिसुणेइ, पडिसुणित्ता जेणेव सभाए सुहम्माए सामुदाइया भेरी तेणेव उवागच्छइ, उवागच्छित्ता सामुदाइयं महा-महया सद्देणं तालेइ ।
तए णं ताए सामुदाइयाए भेरीए तालियाए समाणीए समुद्दविजयपामोक्खा दस दसारा जाव महासेणपामोक्खाओ छप्पण्णं बलवगसाहस्सीओ सत्थवाहप्पभिइओ पहाया जाव विभूसिया जहाविभव-इड्ढिसक्कार-समुदएणं अप्पेगइया हयगया जाव अप्पेगइया पायविहार- चारेणं जेणेव कण्हे वासुदेवे तेणेव उवागच्छंति, उवागच्छित्ता करयल जाव कण्हं वासुदेवं जणं विजएणं वद्धावेंति ।
तए णं से कहे वासुदेवे कोडुंबियपुरिसे सद्दावेइ, सद्दावित्ता एवं वयासी- खिप्पामेव भो देवाणुप्पिया ! आभिसेक्कं हत्थिरयणं पडिकप्पेह, हयगय जाव पच्चप्पिणंति ।
तए णं से कण्हे वासुदेवे जेणेव मज्जणघरे तेणेव उवागच्छइ, उवागच्छित्ता मज्जणघरं अणुपविसइ अणुपविसित्ता समुत्तजालाकुलाभिरामे विचित्तमणिरयण-कुट्टिमतले रमणिज्जे
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