Book Title: Agam 06 Ang 06 Gnatadharma Sutra Mool Sthanakvasi
Author(s): Sudharmaswami, Devardhigani Kshamashaman
Publisher: Global Jain Agam Mission

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Page 144
________________ ज्ञाताधर्मकथा ११ तए णं तेयलिपुत्ते पोट्टिलं दारियं भारियत्ताए उवणीयं पासइ, पासित्ता हहतुट्टे; पोट्टिलाए सद्धिं पट्टयं दुरुहइ, दुरुहित्ता सेयापीएहिं कलसेहिं अप्पाणं मज्जावेइ, मज्जावित्ता अग्गिहोमं करेइ, करित्ता पाणिग्गहणं करेइ, करित्ता पोट्टिलाए भारियाए मित्त-णाइणियग- सयण-संबंधि परिजणं विपुलेणं असण-पाण-खाइम-साइमेणं पुप्फ-वत्थ गंधमल्लालंकारेणं सक्कारेइ, सम्माणेइ, सक्कारित्ता सम्माणित्ता पडिविसज्जेइ । तए णं से तेयलिपत्ते पोट्टिलाए भारियाए अणुरत्ते अविरत्ते उरालाई माणुस्साई भोगभोगाई भुंजमाणे विहरइ । तए णं से कणगरहे राया रज्जे य रहे य बले य वाहणे य कोसे य कोट्ठागारे य पुरे य अंतेउरे य मुच्छिए गढिए गिद्धे अज्झोववण्णे जाए यावि होत्था | जाए पुत्ते वियंगेइ, अप्पेगइयाणं हत्थंगुलियाओ छिंदइ अप्पेगइयाणं हत्थंगुट्ठए छिंदइ, एवं पायंगुलियाओ पायंगुट्ठए वि कण्णसक्कलीए वि णासापुडाइं फालेइ, अंगमंगाइं वियंगेइ । तए णं तीसे पउमावईए देवीए अण्णया पुव्वरत्तावरत्तकालसमयंसि अयमेयारूवे अज्झत्थिए समुप्पज्जित्था- एवं खलु कणगरहे राया रज्जे य जाव अंगमंगाइं वियंगेइ, तं जइ अहं दारयं पयायामि, सेयं खलु ममं तं दारगं कणगरहस्स रहस्सिययं चेव सारक्खमाणीए संगोवेमाणीए विहरित्तए त्ति कटु एवं संपेहेइ, संपेहित्ता तेयलिपुत्तं अमच्चं सद्दावेइ, सद्दावित्ता एवं वयासीएवं खलु देवाणुप्पिया ! कणगरहे राया रज्जे य जाव वियंगेइ, तं जइ णं अहं देवाणुप्पिया! दारगं पयायामि, तए णं तुमं कणगरहस्स रहस्सिययं चेव अणुपुव्वेण सारक्खमाणे दारए उम्मक्कबालभावे जोव्वणगमणपत्ते तव य मम य भिक्खाभायणे भविस्सइ । तए णं से तेयलिपुत्ते अमच्चे पउमावईए देवीए एयमद्वं पडिसुणेइ, पडिसुणित्ता पडिगए | तए णं पउमावई य देवी पोट्टिला य अमच्ची सममेव गब्भं गेण्डिंति, सममेव गब्भं परिवहंति, सममेव गब्भं परिवड्ढेति । तए णं सा पउमावई देवी णवण्हं मासाणं पडिपुण्णाणं जाव पियदंसणं सुरूवं दारगं पयाया । जं रयणिं च णं पउमावई देवी दारयं पयाया तं रयणिं च पोट्टिला वि अमच्ची णवण्हं मासाणं पडिपुणाणं विणिहायमावण्णं दारियं पयाया । तए णं सा पठमावई देवी अम्मधाई सद्दावेइ, सदावित्ता एवं वयासी- गच्छह णं तुम अम्मो! तेयलिपुत्तं रहस्सिययं चेव सद्दावेह । 138

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