Book Title: Agam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapti Sutra Bhagvai Terapanth
Author(s): Tulsi Acharya, Nathmalmuni
Publisher: Jain Vishva Bharati
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उस्को कालद्वयंसि जाय उन्यद्वित्ता उक्कोसकाल द्वितीएसु जाव उववज्जित्तए उक्खित्ते जाव रत्ते
उग्गमण जाव उच्चत्तेणं
उच्चारपासवण
उज्जले जाव दुरहिया से उट्ठाणे जाव परक्कमे
व परिद्वावनिया
उड्ढजाणू जाव विहरइ
उत्तर जाव राई
उत्तरिल्लं जाव गच्छति
उदए जाव पयोग०
उदबिंदु जाव ता
उदगरयणे जाव तच्चाए उदीरिए जान निरिज्ज माणे
उत्पत्तिथाए जाव पारिणामियाए उप्पत्तिया जाव पारिणामिया उप्पन्नवाणदंसणधरा जाव सम्य० उप्पन्नभाणदंसणपरे जाव समोसरणं
उप्पन्ननाणदंसणधरे जाव सव्वण्णू
०
उप्पाडेज्जा जाव केवलं
उम्भिमाणाण वा जाव ठाणाओ
उम्मुक्तबालभावे जाव रज्जवई
उद्ववेह जाव उवटुवेंति जाव पञ्चपिणंति उद्वासा जाब पिणंति
उववज्जिहति जाव उचट्टित्ता
उववज्जिहिति जाव किच्चा
उवागच्छइ जाब नर्मसित्ता जाव एवं उनागच्छिता जाव एवंतमं ते
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उवागच्छित्ता जाव दुरूढा
उपागच्छता जाव नमसिता
उवागच्छत्ता जाव विहरइ उसभ जाव भत्तिचित्तं
उसवणयाए तिहि, उत्सवणयाए नि निखिरणयाए
वि नो दहणयाए चउहि, जे भविए उस्सवणयाए
{
१५।१८६
२४।७६
८२५५
८३३०
२०१५
१५।१४६
१३७८ १७।३०
१८५ १०२४३: १०।१६४
५७
१६।११६
८।४२१
६४
१५।६२
२२८
१७/३०
२०/२०
१२।१६७
२/२२
१५।१२६
६/३१
१६.१०६
११।१४२
१२/३५, ३६
११।१३७
१५/१८६
१५/१८६
१४:१३२
१५।७३
१२/३७
१६।५४
१३।१०१
११।१३८
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१५।१८६
२४/३१
८।२५५
८३३०
२०।१४
६।२२४
१।१४६
१९
५/६
१६।११६
८४२०
६४४
१५/६१
१।११
१२ १०६
१२.१०६
२३८
वृत्ति
वृत्ति
१२३, २५
वृत्ति
११।१३४
१।१६०,१६१
११।१३६
१५।१८६
१५/१८६
१।१०
१५/५६
६१४४
२०५७
१1७
ओ० सू० १३
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