Book Title: Agam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapti Sutra Bhagvai Terapanth
Author(s): Tulsi Acharya, Nathmalmuni
Publisher: Jain Vishva Bharati

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Page 1122
________________ उद्देस जाव अत्यि एवं जहा इस एवं जहा दस पंचसए जाव नो एवं जहा तामली जान सक्कारेड़ एवं जहा तित्यगरमायरो जाव एवं जहा उस जाव पज्जुवासंति एवं जहा तेयगसरीरस्स अंतरं तहेव एवं जहा तेयगस्स संविदुषा तद्देव एवं जहा दवियाया कसायाया भणिया तहा दवियाया जोगाया भाणियव्वा एवं जहा दसमस जाव नामवेज्जेत्ति एवं जहा नवम उसभवतो जाय भविस्स एवं जहा मागावरणियं नवरं दंसणनाम घेत जाव दंसण० एवं जहा नियंडास बसव्या तहा सिसायरस वि भाणियव्वा जाव सिणाए एवं जहा नेरइय उद्देस जाब एवं जहा पंचमसए परमाणुयोगालवत्तव्यवा जाव अणगारेणं एवं जहाँ पढमं पारणगं नवरं एवं जहा पढमसए असंबुद्धस्स अणगारस्स जाव अणुपरिट्ट एवं जहा पढमसए चउथे उद्देसए वहा भागवाव अलमत्य एवं जहा पमएसए जाव नो एवं जहाँ पढमसए नवमे उद्देसए वहा भाणियन्व एवं जहा वारसमए पंचमुदे व कम्मो एवं जहा बितिय सए अत्थिकाय उद्देसए जाव उवओोगं एवं जहा वित्तियसए जाय दिविहाए एवं जहा विडियस नियंतुद्देस जाव अमाणे एवं जहा रायप सेणइज्जे चित्ते जाव चक्खुभूए एवं जहा रायप सेणइज्जो चित्तो एवं जहा रायप्प सेइज्जे जाव अट्टस एवं एवं जहा रायसेइज्जे जाव खुड्डिय Jain Education International ११ १३।१६६ १३/१५० ११.६३ १६४८७ ११।१७८ ८१४३६ ८४३५ १२/२०२ १३।५०,५१ १२:३३ ८४२१ २५१३५१,३६० १२.४६ १८१६२-१९५ ११/६६ १२।२२ __७११५६,१५७ १७१५१-५४ ७११६५ २०१२१,२२ १३.५९ ११४६ १५।१-१२ १८१४० १८५१२२१ ६१८२ ७१५७, १५८ For Private & Personal Use Only ३१९२ ३।१९६ ३१३३ १६/०६ २१८७ ओ० सू० ५२ ८४१७ ८४१६ १२/२०१ १०1३,४ ६१३९ ८१४२० २५।३५६,३५७ जी० २० भ० वृत्ति ५।१५७ ११.६४ १०४५ १२००,२०१ १।२७७-२८० १/४३६ १२/११६,१२० २।१३७ २१६७ २०१०६, १०७ राय ०सू०६७५ राव०सू०६४५ राय०सू०२७१ राय ०सू०७७२ www.jainelibrary.org

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