Book Title: Agam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapti Sutra Bhagvai Terapanth
Author(s): Tulsi Acharya, Nathmalmuni
Publisher: Jain Vishva Bharati

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Page 1125
________________ एवं संसारं आउलीकरेंति एवं परित्तीकरेंति एवं दीहीकरेंति एवं ह्रस्सीकरति एव अणुपरियट्रेति एव वीईवयंति पसत्था चत्तारि अपसत्या चत्तारि एवं स प सु आ च पसत्थं नेयव्व एवं सब्यजीवा वि अणंतखुत्तो एवं सिमायस्स वि एवतियं जाव करेज्जा एवमाइक्खइ जाव उववत्तारो एवमाइक्खइ जाव एवं एवमाइक्खंति जाव एवं एवमाइक्खंति जाव परूवेंति एवमाइवखामि जाव एवामेव एवमाइवखामि जाव परूवेमि एसणिज्जं जाव साइम ओग्गहं जाव विहरइ ओग्गहे जाव धारणा प्रोग्गहो जाव धारणा ओभासंति जाव पभासेंति ओभासेइ जाव छद्दिसि ओराल जाव अतीव ओरालिए जाव कम्मए ओवसमिए जात सन्निवाइए ओसप्पिणी जाव समणाउसो ओहिनाणी रूविदब्वाईजाणइ पासइ जहा नंदीए जाव भावओ ओरालेणं जाव किसे कंखिए जोव कलुस० कंखियस्स जाव कलुस० कंचुइज्जपुरिसो वि तहेव अक्खाति, नवरंधम्मघोसस्स अणगाररस आगमणगहियविणिच्छए करयल जाव निग्गच्छइ। एवं खलु देवाणुप्पिया ! विगलस्स अरहओ ११३८६-३६१ ३३७२ १२।१५२ २५१३५८ २४१४७,५० ७१६३ १५१७,२७ ११४४४ ११४४२ ५११३७ ११४२१ ७।२४ १५६ २०१२० ८1१०० ७।२२६ ११२५८-२६६ २।४३ १०१८१६३१७ १७११६ ५२३ ११३८४,३८५ ३१७२ १२।१५१ २५/३५७ २४।२७ ७।१६२ ११४२० ११४२० ११४२० ५।१३६ ११४२० ७१२२ २।३० १२।११० ८१६८ ७१२२८ वृत्ति; प०११ २०४२ ८.३६६ १४।८१ ५११६ ८.१८६ २०६६ ६।२३२ १११८४ नंदी सू०२२ २०६४ २२७ २।२७ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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