Book Title: Agam 02 Ang 02 Sutrakrutang Sutra Ka Darshanik Adhyayan
Author(s): Nilanjanashreeji
Publisher: Bhaiji Prakashan

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Page 15
________________ मंगलामृतम् यों तो हर आगम अपने आप में पूजनीय, आदरणीय एवं महत्वपूर्ण है, परन्तु सूत्रकृतांग सूत्र की महत्ता कुछ अनूठी है। इसकी विषय-वस्तु, इसकी विषय-विवेचना, इसकी रचना-शैली; सब कुछ अनूठी है। सूत्रकृतांग सूत्र एक दर्पण की भाँति है, जिसमें उस समय के दार्शनिक जगत का प्रतिबिम्ब दिखाई देता है। उस समय जितने भी पंथ, धर्म, संप्रदाय, दर्शन, विचार-परम्पराएं विद्यमान थीं, उन सबका लेखा-जोखा इस सत्र में है। विविध विषयों व विस्तृत चर्चा-विचारणाओं से परिपूर्ण यह आगम परमात्मा महावीर के अनेकान्त सूत्र का प्रत्यक्ष संवाहक है। साध्वी नीलांजना ने इस आगम पर शोध कार्य करके एक चुनौती स्वीकार करते हुए अपनी ऊर्जा भरी प्रतिभा का सम्यक् उपयोग किया है। मुझे इस बात की बहुत प्रसनता है कि मेरी बहिन के शिष्या परिवार में यह पहली डॉक्टर बनने जा रही है। मैं अपनी आज की इस प्रसन्नता की तुलना उस दिन से कर सकता हूँ, जब मेरी बहिन विद्युत्प्रभा डॉक्टर बनी थी। उस दिन की महिमा का तो मैं वर्णन ही नहीं कर सकता; क्योंकि मैं वर्षों से उस पल की प्रतीक्षा कर रहा था। आज वही प्रसन्नता दोगुनी हो गई है, क्योंकि नीलांजना मेरी बहिन (चचेरी) भी है, तो मेरी बहिन की शिष्या भी है। नीलांजना शिशु अवस्था से ही मेरे एवं बहिन विद्युत्प्रभा के प्रति स्नेह के धागे से बंधी हुई है। मुझे खुशी है कि एक अच्छे विषय को चुनकर उसने उसके साथ पूरा न्याय किया है। दर्शन का विषय थोड़ा जटिल है, अतः इसके पठन में स्वाध्यायी वर्ग आलस्य करता है, परंतु साध्वी नीलांजना ने अपनी प्रांजल एवं मँजी हुई लेखनी से इस ग्रंथ को इतने प्रवाह एवं सहज भाषा में लिखा है कि कहीं भी अरूचि का भाव पैदा नहीं होता। ix Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org


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