Book Title: Agam 01 Ang 01 Acharang Sutra Part 02 Author(s): Bhadrabahu, Shilankacharya Publisher: Shravak Hiralal Hansraj View full book textPage 5
________________ आचा० ॥२२४॥ जीवो) नो विजय थाय छे. अर्थात् जे साधु रागद्वेष, तथा इन्द्रियोनी रमणातामां रागी न थाय. तेणे लोक जीत्यो कहेवाय ते आ अध्ययनमां बतान्युं छे. टीकाकार कहे छे केः — जेवुं हुं हुं हुं, तेज प्रमाणे नियुक्तिकारे पण अध्ययननो अर्थाधिकार शस्त्रपरिज्ञामां पूर्वे कहेलो छे, ते सूत्र - आछे. "लोओ जह बज्झइ जह य तं विजाहियव्वं " आ पदवडे सूचव्युं छे के, “लोक ( संसारी-जीवो) जेम बंधाय छे, तेम साधुए न बंधातां ते वधानां कारणने छोडवां जो इए;" तेथी पूर्वे पहेला अध्ययनमां बंध बताव्यो; तेम आ वीजा अध्ययनमां बंधने छोडावानुं सूचयुं; एटले शस्त्रपरिज्ञामां बंध, अने लोकविजयमां बंधथी छुटवानुं वतान्युं छे ते संबंध छे. ना चार अनुयोगद्वार छे. तेमां सूत्र अने अर्थनुं कहेवुं, ते अनुयोग छे, तेमां चार द्वार ( उपायो, व्याख्यांग) कवां उपक्रम, निक्षेप, अनुगम, नय छे. उपक्रम वे प्रकारे छे. शास्त्र संबंधी, शास्त्रीय अने लोक संबंधी ते लौकिक छे. निक्षेपात्रण प्रकारना छे. ओघ, नाम अने सूत्रालापक निष्पन्न निक्षेप एम त्रण भेद छे. अनुगमसूत्र, अने नियुक्ति एम वे प्रकारे छे, नयोनैगम विगेरे छे. शास्त्रीय उपक्रम, आ उपक्रममां अर्थ अधिकार वे प्रकारे छे. अध्ययन अने उद्देशानो अर्थ अधिकार छे, तेमां अध्ययननो अर्थ अधिकारशस्त्र ""Page Navigation
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