Book Title: Agam 01 Ang 01 Acharang Sutra Part 02
Author(s): Bhadrabahu, Shilankacharya
Publisher: Shravak Hiralal Hansraj

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Page 3
________________ शस्त्रपरिज्ञा नाम पहेलं अध्ययन जे घणुं गंभीर छे, तेजें विवरण गंधहस्तिनामना श्रेष्ठ आचार्ये कहेलं छे तेमांथी हं कंडकविशेष आचा० खुलासो करुं छ. ते पहेलं अध्ययन पूर्वे कही गया. हवे बीजं अध्ययन कहेवाय छे. तेनो आवीरीतनो संबंध छे. B आ संसारमा मिथ्याख-उपशम-क्षय क्षयउपशम ए त्रणमांथी कोइपण सम्यक्त्व प्राप्त थयेला ज्ञानी साधु पुरुषने अत्यन्त ए-12 ॥२२२॥ कान्त बाधा रहित परमानंदरूप स्वतखलुं सुख जे आवरण रहित ज्ञान दर्शन (केवळज्ञान केवळदर्शन) प्राप्त थयेलाने मोक्षमुंज कारण छे. अने आश्रवनो निरोध अने निर्जरानी प्राप्ति छे. तथा मूळ-उत्तर एवा बे भिन्न गुणो छे एवं चारित्र छे अने बीजा बधा व्रतोनी वृत्ति (निर्वाह) नो कल्प उत्पन्न करेल छे, तथा निर्विघ्ने वधा प्राणीने संघटन परिताप अपद्रावण विगेरेथी दुःख न देवारूप जे सवोत्तम चारित्र छे. ते चारित्रनी सिद्धि माटे आ अध्ययन छे. मरणना अभावना प्रसंगथी पांचभूत रहित (चेतनरुप) आत्मानो धर्म केवळज्ञाननी प्राप्ति छे, जेथी एका चारित्रनी नथा आत्मानी | तथा आत्माना गुणज्ञाननी तथा मोक्षनी प्राप्ति माटे आ सूत्रनं अध्ययन छे ते वताव्युं छे " उपरना वाक्यथी ज्ञान प्राप्ति" तेथो बृहस्पतिना नास्तिक मतनुं खंडन कर्यु, कारण के ते पांच भूत माने छे ते भूतो जड छ । अने आत्मा चेतन छे. तेनो गुणज्ञान छे ते वताव्युं छे. आ प्रमाणे सामान्यथी जीवनुं अस्तित्व स्वीकारी विशेषपणाथी जीवनो मोDIR बताववाथी बौद्ध विगेरे भतनं खंडन थयु. कारण के जीवत्रणे काळमां होय तो तेना मोक्षनो संभव थाय. एकेन्द्रिय पृथ्वी, पाणी, अग्नि, पवन, वनस्पति विगेरे भेदवाळा जीवोने बतावी अनुक्रमे समान जातीयवाला पत्थरनी शीला SHRAS

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