Book Title: Adhyatma Kalpdrumabhidhan
Author(s): Fatahchand Mahatma
Publisher: Fatahchand Shreelalji Mahatma

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Page 3
________________ व्याजीव तिष्ठति जरा परितर्जयन्ती, रोगाश्च शत्रव इव ग्रहरन्ति देहम् । प्रायुः परिस्रवति मिन्नघटादिवाम्भो, लोकरतथाऽप्यहितमाचरतीति चित्रम्।। वृद्धावस्था भयङ्कर बाधिनी की तरह सामने खड़ी है। रोग शत्रुओं की तरह आक्रमण कर रहे हैं, आयु फूटे हुए घड़े के पानी की तरह निकली जा रही है । आश्चर्य की बात है, फिर भी लोग वही काम करते हैं, जिससे उनका अनिष्ट हो। वै. श. १०६ -भर्त हरि विद्युत लक्ष्मी प्रभुता पतंग, प्रायुष्य ते तो जलना तरंग । पुरंदरी चाप अनंग रंग, शुंराचिए त्यां क्षण नो प्रसंग ॥ -श्रीमद् राजचन्द्र मुद्रक प्रतापसिंह लूणिया जोब प्रिंटिंग प्रेस, ब्रह्मपुरो; अजमेर इस स्वजातीय प्रेस में सब प्रकार की छपाई का काम बहुत उमदा सस्ता और जल्दी होता है संचालक-जीतमल लूणिया

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