Book Title: Acharya Bhikshu Aakhyan Sahitya 01
Author(s): Tulsi Ganadhipati, Mahapragya Acharya, Mahashraman Acharya, Sukhlal Muni, Kirtikumar Muni
Publisher: Jain Vishva Bharati

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Page 13
________________ आमुख आगम साहित्य को चार अनुयोगों में विभक्त किया गया है । द्रव्यानुयोग, गणितानुयोग, चरणकरणानुयोग तथा कथानुयोग । द्रव्यानुयोग - दार्शनिक दृष्टि है, गणितानुयोग-विस्तार दृष्टि है। चरणकरणानुयोग- - आचार - शास्त्रीय दृष्टि है। धर्मकथानुयोग घटना परक दृष्टि या जीवन-परक दृष्टि है। सभी अनुयोगों का अपनाअपना सापेक्ष महत्त्व है । I द्रव्यानुयोग को समझना हर आदमी के लिए सहज नहीं है । इसीलिए द्रव्य तत्त्व को समझाने के लिए प्रमाण शास्त्र में प्रतिज्ञा, हेतु, दृष्टांत, उपनय तथा निगमन के रूप में पंचावयव की व्यवस्था है । विज्ञ लोगों के लिए प्रतिज्ञा और हेतु ही पर्याप्त हैं । पर सामान्य आदमी को समझाने के लिए दृष्टांत, उपनय तथा निगमन का प्रयोग भी तर्कशास्त्र में अपेक्षित माना गया है । दृष्टांत को ही हम कथा आख्यान कह सकते है। इसी दृष्टि से सभी धर्म परम्पराओं में पुराण साहित्य का विस्तार हुआ है । पुराण साहित्य मुख्यतः जीवन चरित्र या कथा- भाग ही है । मूलतः वह प्राकृत और संस्कृत में है । यों आगमों में भी कथानकों की सरस व्यवस्था है । ज्ञाताधर्मकथा में कथानकों का जिस प्रकार रुचिर ग्रंथन किया गया है वह अत्यन्त प्रबोधक तो है ही पर साहित्य की दृष्टि से भी उसका लालित्य अतुल है । पर धीरे-धीरे प्राकृत और संस्कृत का स्थान अपभ्रंश तथा देसी भाषाओं ने ले लिया। जैन मुनियों ने भी अनेक क्षेत्रीय भाषाओं में आख्यान साहित्य की रचना की है। जन साधारण को प्रतिबोध देने के लिए जैन संतों ने विपुल मात्रा में राजस्थानी साहित्य की भी संरचना की है । यद्यपि राजस्थानी जैन साहित्य की पहुंच अन्य विद्वानों तक नहीं बन सकी। इसलिए अब तक जैन राजस्थानी साहित्य का यथार्थ मूल्यांकन नहीं हो पाया। पर जैन साहित्यकारों ने राजस्थानी में जो साहित्य लिखा है वह गुणात्मक तथा संख्यात्मक दोनों ही दृष्टियों से अत्यन्त महत्त्व पूर्ण है । उन्नीसवीं शताब्दी में तेरापंथ के प्रवर्तक आचार्य भिक्षु ने द्रव्यानुयोग, चरणकरणानुयोग तथा कथानुयोग की दृष्टि से प्रभूत साहित्य लिखा है । द्रव्यानुयोग की दृष्टि से उनकी नौ पदार्थ, अनुकम्पा चौपई, श्रद्धा की चौपई आदि अनेक रचनाएं

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