Book Title: Acharya Bhikshu Aakhyan Sahitya 01
Author(s): Tulsi Ganadhipati, Mahapragya Acharya, Mahashraman Acharya, Sukhlal Muni, Kirtikumar Muni
Publisher: Jain Vishva Bharati

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Page 16
________________ भिक्षु वाङ्मय - खण्ड - १० अंगुल प्रमाण ऊंचा, एक सौ साठ अंगुल लम्बा, मध्य भाग परिधि निन्यानवें अंगुल, गर्दन (मस्तक से घुटने तक) बीस अंगुल, घुटने चार अंगुल घुटने के ऊपर जंघा सोलह अंगुल, खुर चार अंगुल हैं। उसके समस्त अंग हृष्ट-पुष्ट, सुन्दराकार, प्रशस्त, मनोहर, विशिष्ट एवं सुलक्षण गुणों को धारण करने वाले हैं । वह जातिवान, निर्दोष विनीत एवं आज्ञाकारी है। उसने कभी चाबुक का प्रहार नहीं सहा। उसका शरीर दोनों पार्श्व में ऊंचा, मध्य भाग में संकड़ा तथा अत्यन्त सुदृढ़ है । उसका तेज, पराक्रम, धैर्य - साहस अत्यन्त गाढ़ है । , ४ उसकी आंखें नींद में भी बंद नहीं होती। वे कमलपत्र की तरह सुशोभन हैं। उसका चंचल शरीर अपने स्वामी का कार्य करने में पूर्ण समर्थ है। उसके खुर सुन्दर तथा चच्चर पुट चरण धरती तल पर आघात करते हुए चलते हैं । वह दोनों पैर एक साथ उठाता है। पैरों से धरती का खनन एवं गड्ढा नहीं करता । वह कमल नाल एवं पानी पर भी अपने बल पराक्रम से चलता है। माता की जाति और पिता के कुल इन दोनों पक्षों से पूर्ण निर्मल है। शुक्ल पिता पक्ष के कारण वह अत्यंत मेधावी, बुद्धिमान एवं स्वामीभक्त है । वह दुर्बुद्धि नहीं अपितु भद्र स्वभाव वाला है। उसकी रोमराजि, अत्यंत पतली, सुकुमार एवं स्निग्ध है । उसकी छवि, कांति मनोहर है । वह देवता के मन एवं पवन की गति को भी अपनी गति से पराजित कर देता है । वह ऋषीश्वर की तरह क्षमावान है। वह पानी, अग्नि, रेणु, कर्दम - कीचड़, धूलभरी राहों, नदी तट, पर्वत शिखर, गिरिकन्दराओं आदि अनेक सम-विषम स्थानों को लांघने में जरा भी हिचकिचाहट नहीं करता। वह सवार के इशारे से चलता है । वह यथावसर हिनहिनाता है । उसे आलस्य, नींद, शीत ताप नहीं घेरते । वह स्थान की मर्यादा देखकर ही मलमूत्र का विसर्जन करता है। जातिवान मातृपक्ष से उत्पन्न होने के कारण उसकी घ्राणेन्द्रिय- नासापुट अत्यन्त सुगंधित हैं। उसके श्वासोच्छ्वास से कमल के फूल जैसी सुवास आती है। वह युद्धभूमि में सुदक्ष सुभट पर भी दंड की तरह अचानक प्रहार करता है । खेद - खिन्न होने पर भी अश्रुपात नहीं करता । उसका रक्त तालुआ निर्दोष है। इस तरह उसके गुण अगणित हैं ।' सामान्य आदमी क्या घुड़सवार को भी घोड़े का तथा उसके गुणसूत्रों का इतना सूक्ष्म ज्ञान होना कठिन है । आचार्य भिक्षु ने इसका बड़ी सुघड़ता से वर्णन किया है 1 घोड़े के आभूषणों का भी अति विस्तृत वर्णन है । (ढाल. ४१-४२) यह तो घोड़े का एक उदाहरण है, पर आचार्य भिक्षु ने रथ, चक्र, वज्र आदि

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