Book Title: Acharang Churni Author(s): Jindasgani Mahattar, Publisher: Rushabhdevji Keshrimalji Shwetambar Samstha View full book textPage 9
________________ श्रीआचा रांग सूत्र चूर्णिः ॥ ७॥ J पसत्थगुणचरणाणं अहीगारो, एयाणि णवविहभचेराणि निजरत्थं पढिअंति, जहत्थ भणियं तह आयरिअंति, तस्स पुण णवबंभचेर-10 अर्थाधिसुयखंधस्स इमे अज्झयणा भवंति, तंजहा- 'सत्थपरिण्णा लोगविजओ'गाहा 'अट्ठमए य विमोक्खो 'गाहा (३१,३२-९) काराः एतेसिं णवण्हं अज्झयणाणं इमे अत्थाहिगारा भवंति, तंजहा-'जियसंजमो य' गाहा (३३) 'णिस्संगया य छट्टे' गाहा, (३४-१०) तत्थ परिणाए जीवसम्भावोवलंभो कीरति, जीवअभावे णवि बंभचरणं नवि तप्पयोजणं अतो अत्तोवलंभो पढमं कायवो, एवं सो अप्पाणं उबलभित्ता उत्तरकाले सत्तरसंजमे अप्पाणं ठावेइ संजमं वा अप्पाणे, लोगविजए उदइओ भावो | लोगो कसाया जाणियब्वा, जहा य खवेयब्वा, एवं महब्धयावहियस्स विसयकसायलोयं जिणंतस्स जइ अणुलोमपडिलोमा | उवसग्गा उप्पज्जेजा ते सहियब्वा ततितो अहिगारो, पंचमहब्बयअवहितमइस्स जियकसायलोयस्स सुहदुक्खं तितिक्खमाणस्स पंचम्गितावगोमयसुकसेलामाइआहारजंतणतवोविसेसं दळूण विजातिरिद्वीओ य मा दिद्विमोहो भविस्सइ तेण चउत्थे | संमत्तं, पंचमे तहेव अहिगारं उच्चारित्ता लोगं सारमसारं जाणित्ता विस्सारं छहित्ता सारगहणं कायब, छटे उ तहेव अहिगारे || उच्चारित्ता संमत्तादिसारं गहेऊणं भावतो निस्संगो विहरेजा, सत्तमे तु मोहसमुत्था परीसहोवसग्गा सहिता परिजाणियब्वा, | अट्ठमे तु वियाणित्ता णिजाणं कायव्, जं भणितं भक्तप्रत्याख्यानं, नवमे केण इमं दरिसितमाइण्णं वा?, वीरसामिणा, एसो उP बंभचेरे पिंडत्थो वण्णिओ समासेणं ! एत्ताहे एकेकं अज्झयणं वण्णइस्सामि ॥१॥' तत्थ पढमं अज्झयणं सत्थपरिणा, तस्स चत्तारि अणुओगदारे वण्णेऊणं पुव्वाणुबीए पढम पच्छाणुपुबीए णवमं अणाणुपुब्बीए णवगच्छगयाए०, णामे खयोवसमिए समो-DI वतरति, भावप्पमाणे लोउत्तरे आगमे विभासा, णो णयप्पमाणे, कालियसुयपरिमाणसंखाए, उस्सण्णेणं सबसुयं ससमयवत्तव्वयाए, जाणं काययंत निसंगो विहरमाणित्ता विसावा य माPage Navigation
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