Book Title: Acharang Churni
Author(s): Jindasgani Mahattar,
Publisher: Rushabhdevji Keshrimalji Shwetambar Samstha
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श्रीआचारांग सूत्रचूर्णिः
॥ ११ ॥
काइयो आउआइओ जाव देवो, तत्थ खेत्तादिसं पहुच चउसु महादिसासु जीवाणं गति आगति अस्थि, सेसासु णत्थि, जेण जीवो असंखेजेसु पदेसेसु ओगाहति, पण्णवगदिसा उण पडच अट्ठारसुवि दिसासु अत्थि गइरागमणं वा जीवाणं, एत्थ पुण एकेकीए पण्णवगदिसाए अट्ठारसविहाएवि भावदिसाए गमणं आगमणं वा भवति, स पुण संजोगो 'अण्णतरीओ दिसाओ वा अणुदिसाओ वा आगओ अहमंसि' एतेण गहिओ भवति, तत्थ दिसाग्रहणात् पण्णवगदिसाओ चत्तारि य तिरियदिसा उडे अ अहे य अट्ठारस य भावदिसाओ गहियाओ भवंति, अणुदिसाग्रहणात् पुण चत्तारि अणुदिसाओ गहियाओ, तत्थ असन्निदिसाओ आगयाणं णत्थि एतं विन्नाणं, अन्नतरीओ दिसाओ आगयाणं एवमेगेसिं णो णातं भवति, एवमवधारणे इति उपदेसे वा णातमुवधारितं, अहवा उपसंधारवयणमेतं, तंजहा- कोइ मत्तवालो पुरिसो अइमत्तो कलालाऽऽवणाटो अन्नाओ वा वमंतो मजं गंधेण साणेण वदणे संपिहिजमाणो सहीहि ओखेविओ सगिहमाणीओ मदावसाणे पडिबुद्धोऽवि सोंण याणति कओ वा केण वा आणिओ ?, कओ मदकाले ?, एस दितो, उवसंहारो इमो एवमेगेसिं, अहवा इदं च एगेसिं णो णातं भवति तंजहा- 'अस्थि मे आया ओववातिए, णत्थि | मे आया ओववातिए, के वाऽहं आसी ?, के वा इओ चुए पेचा भविस्सामि' (३-१६) अस्थित्ति विजमाणए वित्ति, मे इति अत्तनिदेसे, अततीति अप्पा हेउपच्चयसामग्गिपिहन्भावेसु, अहवाऽऽयपच्चइओ पाणियं भूमी आगासं कालो एवमादि, एतेहिं ऊहिं अस्थि अप्पा, एवं एगेसिं णो परिण्णातं भवति, तज्जीवतस्सरीरवातियाणं तु अस्थि अप्पा, किंतु उववातिओ एतण्णो परिणतं भवति, सरीरं चैव तेसिं अप्पा, संसारी न भवति, जइ अण्णाओ सरीराओ निष्फिडतो दिसिज, ण पदिस्सति तेण न संसरति, आतग्रहणेण तिष्णि सट्टाणि पावादियसताणि गहियाणि भवंति, आसीतं किरियात्रादिसतं, तत्थ किरियावादीणं
दिक्संयोगाः आत्मप्रत्ययः
॥ ११ ॥

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