Book Title: Acharang Churni
Author(s): Jindasgani Mahattar, 
Publisher: Rushabhdevji Keshrimalji Shwetambar Samstha

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Page 14
________________ श्रीआचा रांग सूत्रचूर्णिः ॥ १२ ॥ अस्थि केसिंचि सव्वगतो असव्वगतो वा, तथा कत्ता अकर्ता मुत्तो अमुत्तो वा अत्थितेऽवि सामाकतंदुलमित्ते अन्नेसिं अंगुट्ठ| पव्वमित्तो अन्नेसिं पईवसिहोब सोहियाहिट्ठितो, एतेसिं सव्वेसिं अस्थि उववादिओ य, अकिरियावादीणं णत्थि चेव, कओ उववादिओ ?, अण्णाणिया अप्पाणं पडुच्च ण विपडिवअंति, वेणइया य, अहवा इमंमि अत्तसन्भावोवलं मुद्देसए सम्मत्तगहणुदेसए वा अवस्सं सम्मदंसणायारो वण्णेयव्त्रो तप्पडिवक्खं च मिच्छंति, तं जविय चउत्थे सम्मतज्झयणे वित्थरेण वणिजिहिति तहावि इह संखेदेसेणं उल्लाविजइ, सम्मदंसणपरिच्छाएवि आदिपदत्थो जीवो, तहिं सिद्धे सेसपदत्थसिद्धी, तं चैव उवरिं इच्चेव उद्देमए भणिहिति, तंजा 'से आतावादी लोगावादी', कहं सम्मत्तं न लब्भति ?, भण्णति, अट्ठण्हं पगडीणं पढमिल्लगाण उदए णो सण्णा भवति, पगडीणं अभितरे, सण्णत्ति वा बुद्धित्ति वा नाणंति वा विष्णाणंति वा एगट्ठा, आदिरंतेण सहिता, सण्णाग्रहणेणं आभिणिबोहियनाणं सूतिं भवति, एवं आभिणिबोहियनाणं अस्तन्निदिसाए एगंतेण णत्थि, सन्नीवि तिरीयं अभिनिवेसेणं णत्थि, 'केसिंचि अस्थि सन्ना' गाहा (६३-१६) जेसिपि अस्थि अप्पा उववाइओ य तेसिपि एतं णो णातं भवति के अहं आसी रइओ वा तिरिओ वा इत्थी वां पुरिसो वा पुंसओ वा ? के व इओ-इमाओ माणुस्साओ चुओ पेच्चत्ति परलोगे, तो एसो ताव अयाणतो, तच्चिवरीओ जाणओ, सो कहं जाणइ ?, भण्णइ - 'सहसंमुतियाए परवागरणेणं अन्नेसिं वा सोचा ' (४-१९) सोभणा मति संमति सहसंमुतियाएति 'इत्थ य सहसम्मइया जं एवं' गाहा (६५-२० ) पढियव्वा, एसा चउव्विहावि सहसंमुइया आतपच्चक्खा भवति, परवागरणं णाम सव्वनाणीणं तित्थगरो परो-अणुत्तरो, वागरिञ्जतीति वागरणं परस्स वागरणं परं वा वागरणं परवागरणं, परस्स वा वागरणं परोवदेसो जहा गोयमसामी तित्थंगरवयणेणं इंदनागं संबोधति-भो अणेगपिंडिया ! सम्यक्त्वग्रहः ॥ १२ ॥

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