Book Title: Acharang Churni
Author(s): Jindasgani Mahattar,
Publisher: Rushabhdevji Keshrimalji Shwetambar Samstha
View full book text
________________
लोकादि
वादिता
श्रीआचारांग सूत्र
चूर्णिः ॥१४॥
HAINITANDARMED
पदिह,
IA
देवा ! तं संभरह जातिं ॥१॥ जह एवं कोइ सहसंमुइयाए जाणइ जहा सोऽहं तहेव अबो परतो अण्णाओ वा सोचा अणेगहा जाणाविओ अप्पाणं पञ्चभिण्णाइ जाव सोऽहमिति, जइवा कोई भणेजा भणितं भट्टारएणं-अप्पा अस्थि, न तस्स लक्खणं उवदिहूँ, भण्णइ-भणितं सोऽहमिति, इह निरहंकारे सरीरे जस्स इमोऽहंकारो, तंजहा-अहं करेमि मया कयं अहं करिस्सामि, एयं तस्स लक्षणं जो अहंकारो, भणितं अप्पलक्खणं । इदाणी पगतं भण्णइ-से आआवादी लोगावादी कम्मावादी किरियावादी' (५-२२) जेण एवं अप्पाजहुद्दिवउवलद्धिकारणाणं अन्नतरेणं उवलद्धो से आयावादी-आयात्थित्तवादी, णो णाहिवादी, लोगवादी गाम जह चेव अहं अत्थि एवं अन्नेवि देहिणो संति, लोगअभंतरे एव जीवा, जीवाजीवा लोगसमुदओ इति, भणितो लोगवादी, अकम्मस्स संसारो पत्थि तेण कम्मवादीनि, तस्स बंधो चउबिहो पगतिठितिअणुभागपदेसबंधो य, सो य ण विणा आसवेण तेण आसवो भाणियन्वो, आसवो किरियाए भवति, भणियं च-"जाव चणं एस जीवे सयासमियं एयति वेयति | चलति ताव ण तस्स अंतकिरिया भवति, किरिया य जीवस्स अत्यंतरभूताण भवति तेण भण्णति 'अकरिंसु' वऽहं करेमि वऽहं' अहवा णिच्चत्तअन्नत्तकत्तित्ते सिद्धे एतं सिद्धं भवति-'अकरेंसु वऽहं करिस्सामि वऽहं' अहवा तिकालकजववएसा आया अप्पचक्खो, तत्थ काइयं वाइयं माणसियं तिविहं करणं, एक्केक्कं कियं कारियं अणुमोदियमिति, तेण भणइ-'अकरिंसु वऽहं करेमि वऽहं करिस्सामि वऽहं' तत्थ करेसुं वऽहं-सयं कियं वा एवं कारावियं वा अणुमोदितं वा, एवं वट्टमाणेऽवि करेमि कारवेमि अणुमोयामि, अणागतेऽवि करिस्सामि कारविस्सामि अणुमनिस्सामि, एएसिं पुण नवण्हं पदाणं दो आदिपदा गहिया अंतिम च, अवसेसा पुण अणुत्तावि अत्थतो सूइजंति, एवं जोगत्तियकरणत्तिएणं णवओ भेदो जोए नायब्बो, अतीतग्रहणा अतीताणि चेव भवग्गह
॥१४॥

Page Navigation
1 ... 14 15 16 17 18 19 20 21 22 23 24 25 26 27 28 29 30 31 32 33 34 35 36 37 38 39 40 41 42 43 44 45 46 47 48 49 50 51 52 53 54 55 56 57 58 59 60 61 62 63 64 65 66 67 68 69 70 71 72 73 74 75 76 77 78 79 80 81 82 83 84 85 86 87 88 89 90 91 92 93 94 95 96 97 98 99 100 101 102 103 104 105 106 107 108 109 110 111 112 113 114 115 116 117 118 119 120 121 122 123 124 125 126 127 128 129 130 131 132 133 134 135 136 137 138 139 140 141 142 143 144 145 146 147 148 149 150 151 152 153 154 155 156 157 158 159 160 161 162 ... 384