Book Title: Acharang Churni
Author(s): Jindasgani Mahattar, 
Publisher: Rushabhdevji Keshrimalji Shwetambar Samstha

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Page 15
________________ श्रीआचा- एगपिंडिओ ते पुच्छइ, जहा वा सुलसं समणोवासियं अंबडो परिव्वायओ, अन्नेसिं वा अंतिए सोचति तित्थगरवइरित्तो || औपपातिरांग सूत्र- जो अण्णो केवली वा ओहिणाणी वा मणपजवनाणी वा चोद्दसपुब्बी वा दसपुब्बी वा णवपुब्बी वा एवं जाब आयारधरो वा सामा कादि चूर्णिः इयधरो वा सावओ वा अण्णतरो वा सम्मद्दिट्ठी, तिण्हं उबलद्धिकारणाणं अण्णतरेणं जाणइ, तंजहा-पुरस्थिमाओ वा दिसाओ ॥ १३ ॥ आगओ अहमंसि, पण्णवगदिसाओ य भावदिसाओ य सबाओ गहियाओ भवंति, अहवा अप्पवयणं नातं भवति, अहवा जम्ममच्चुजाग(ज)रादिया संसारिभावा णाआ भवंति, एवमेतं जहोद्दिट्ठक्कमेणं एगेसिंणातं भवति, अहवा एवं मण्णे जहेव दिसाविदिसाओ एगेसिं गतिरागई णाआ भवति तहेव इमंपि णातं, तंजहा-अत्थि मे आया उववातिए,' आया अट्ठविहे तंजहा-दवियाता | कसायाता. 'दविए कसाय जोगे उवजोगे नाण दंसणे चरणे। विरिये आता(य) तथा अट्ठविहो होइ नायव्यो॥१॥एवमादी,उववादी संसारी, अण्णो सरीराओ अमुत्तो णिच्चो य अब्भुवगतं भवति, जेण संसरंतो न विणस्सइण य अकम्मस्स संसारो तेण कस्सा(म्मा)वि णहि सध्वगतस्स संसारो तेण ण सव्वगतो, णहि णिग्गुणस्स कयत्तणं तेण गुणीवि, जो इमाओ जहा परूवियाओ दिसाओ अणुदिसाओ य अणुसंचरइ धावति गच्छति वा एगट्ठा, अणुगयो कम्मेहिं कम्माई वा अणुगतो संसरति अणुसंसरति, पुचि तप्पाउग्गाई कम्माई करेइ पच्छा संसरति, अणुमंभरति वा बत्तव्यं, जहा भट्टारएणं असंखेजाई जम्माई संभरित्ता गोयमसामी भणितो-चिरसंसिट्ठोऽसि मे गोयमा!" अहवा जो एगं भवं सब्बपञ्जवाहें अणुसंभरति सो सब्वभवग्गहणाणि सव्वपजवेहि अणु| संभरति, ओहिणाणी कोइ संखेजाइ उवलभित्ता मनइ-जो एयाओ दिसाओ वा अणुदिसाओ वा अस्सिओ धावति सोऽहं, एवं | ra चेव अण्णस्स अक्खाइ, जहा मल्लिसामी छण्हं रायाणं 'किंथ तयं पम्हुटुं ? जत्थ गयाओ विमाणपबरेसु । वुच्छा समयणिबद्धं ॥ १३ ॥ PREMIUMpmathuMONIPAL Amania

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