________________ आज से सौ साल पूर्व उचित साधनों के अभाव में जिनागमों का अध्ययन अत्यन्त दुष्कर था। विश्व के विद्वान जिनागम की एक ऐसी कुंजी तलाश रहे थे, जो सारे रहस्य खोल दे और उनकी ज्ञानपिपासा बुझा सके। ऐसे समय में एक तिरसठ वर्षीय वयोवृद्ध त्यागवृद्ध तपोवृद्ध एवं ज्ञानवृद्ध दिव्य पुरुष ने यह काम अपने हाथ में लिया। वे दिव्यपुरुषथे उत्कृष्ट चारित्रा क्रिया पालक गुरुदेवप्रभु श्रीमद् विजय राजेन्द्रसूरीश्वरजी महाराज / उन्होंने जिनागम की कुंजी निर्माण करने का जटिल कार्य सियाणा नगरस्थ श्री सुविधिनाथ जिनालय की छत्रा छाया में अपने हाथ में लिया। कुंजी निर्माण की यह प्रक्रिया पूरे चौदह वर्ष तक चलती रही और सूरत में कुंजी बन कर तैयार हो गयी। यह कुंजी है 'अभिधान राजेन्द्र'। यह कहना जरा भी अतिशयोक्तिपूर्ण नहीं होगा कि आगमों का अध्ययन करते वक्त 'अभिधान राजेन्द्र पास में हो तो और कोई ग्रन्थ पास में रखने की कोई आवश्यकता नहीं है। जैनागमों में निर्दिष्ट वस्तुतत्त्वजो' अभिधान राजेन्द्र 'में है, वह अन्यत्र हो या न हो, पर जो नहीं है; वह कहीं नहीं है। यह महान ग्रन्थ जिज्ञासु की तमाम जिज्ञासाएँ पूर्ण करता है। भारतीय संस्कृति में इतिहास पूर्व काल से कोश साहित्य की परम्परा आजतक चली आ रही है। निघंटु कोश में वेद की संहिताओं का अर्थ स्पष्ट करने का प्रयत्न किया गया है। यास्क' की रचना' निरुक्त में और पाणिनी के अष्टाध्यायी' में भी विशाल शब्दसंग्रह दृष्टिगोचर होता है ये सब कोश गद्य लेखन में हैं। इसके पश्चात् प्रारंभ हुआ पद्यरचनाकाल।जो कोश पद्य में रचे गये, वे दो प्रकार से रचेगये। एक प्रकार है, एकार्थक कोश और दूसरा प्रकार है-अनेकार्थक कोश। कात्यायन की' नाममाला', वाचस्पति का' शब्दार्णव', विक्रमादित्य का'शब्दार्णव' भागुरी का 'त्रिकाण्ड' और धनवन्तरी का निघण्टु, इनमें से कुछ प्राप्य हैं और कुछ अप्राप्य। उपलब्ध कोशों में अमरसिंह का' अमरकोश' अत्यधिक प्रचलित है। धनपाल का' पाइयलच्छी नाममाला' 276 गाथात्मक है और एकार्थक शब्दों का बोध कराता है। इसमें 868 शब्दों के प्राकृत रूप प्रस्तुत किये गये हैं। आचार्य श्री हेमचन्द्रसूरिजीने ' पाइयलच्छी नाम माला' पर प्रामाणिकता की मुहर लगाई है। धनञ्जय ने 'धनञ्जय नाममाला' में शब्दान्तर करने की एक विशिष्ट पद्धति प्रस्तुत की है। 'धर' शब्द के योग से पृथ्वी वाचक शब्द पर्वत वाचक शब्द बन जाते हैं-जैसे भूधर, कुधर इत्यादि। इस पद्धति से अनेक नये शब्दों का निर्माण होता हैं। इसी प्रकार धनञ्जय ने ' अनेकार्थनाममाला' की रचना भी की है। कलिकाल, सर्वज्ञ श्री हेमचन्द्राचार्य के अभिधान चिन्तामणि','अनेकार्थसंग्रह',निघण्टु संग्रह और ' देशीनाममाला' आदि कोश ग्रन्थ सुप्रसिद्ध हैं। इसके अलावा' शिलोंछ कोश' 'नाम कोश' शब्द चन्द्रिका', 'सुन्दर प्रकाश शब्दार्णव', शब्दभेद नाममाला' 'नाम संग्रह' ,शारदीय नाममाला', शब्द रत्नाकर', 'अव्ययैकाक्षर नाममाला' शेष नाममाला,' शब्दसन्दोह संग्रह',' शब्द रत्न प्रदीप', विश्वलोचन कोश', 'नानार्थ कोश' पंचवर्ग संग्रह नाम माला', अपवर्गनाममाला', एकाक्षरी नानार्थकोश,''एकाक्षर नाममलिका', एकाक्षर कोश','एकाक्षर नाममाला',' द्वयक्षर कोश', देश्य निर्देश निघण्टु', 'पाइय सद्दमहण्णव', अर्धमागधी डिक्शनरी',जैनागम कोश',' अल्पपरिचित सैद्धान्तिक कोश', 'जैनेन्द्र सिद्धांत कोश' इत्यादिअनेक कोश ग्रन्थभाषा के अध्ययनार्थ रचे गये हैं। इनमें से कई कोश ग्रन्थ 'अभिधान राजेन्द्र' के पूर्व प्रकाशित हुए हैं और कुछ पश्चात् भी। 'अभिधान राजेन्द्र' की अपनी अलग विशेषता है। इसी विशेषता के कारण यह आज भी समस्त कोश ग्रन्थों का सिरमौर बना हुआ है। सच तो यह है कि जिस प्रकार सूर्य को दीया दिखाने की आवश्यकता नहीं होती, उसी प्रकार इस महाग्रन्थ को प्रमाणित करने की आवश्यकता नहीं है। सूर्य स्वयमेव प्रकाशित है और यह ग्रन्थराज भी स्वयमेव प्रमाणित है, फिर भी इसकी कुछ विशेषताएं प्रस्तुत करनाअप्रासंगिक नहीं होगा। 'अभिधान राजेन्द्र' अर्धमागधी प्राकृत भाषा का कोश है। भगवान महावीर के समय में प्राकृत लोक भाषा थी। उन्होंने इसी भाषा में आम आदमी को धर्म का मर्म समझाया।यही कारण है कि जैन आगमों की रचना अर्धमगामी प्राकृत में की गई। इस महाकोष में श्रीमद्ने प्राकृत शब्दों का