Book Title: Aagam 42 Dashvaikalik Choorni Author(s): Dipratnasagar, Deepratnasagar Publisher: DeepratnasagarPage 11
________________ आगम (४२) “दशवैकालिक”- मूलसूत्र-३ (नियुक्ति:+|भाष्य+चूर्णि:) अध्ययनं [-], उद्देशक [-1, मूलं [-] / [गाथा:], नियुक्ति: [११-३३/११-३४], भाष्यं [-] मुनि दीपरत्नसागरेण संकलिता: आगमसूत्र - [४२], मूलसूत्र - [०३] "दशवैकालिक नियुक्ति: एवं जिनदासगणि-रचिता चूर्णि: सुत्राक श्रीरा- मणूसा, खेतदसा दस आगासपएसा, कालदसा 'वाला मंदा किडा' जहा तंदुलवेयालिए, भावदसा एते चेव दस अजायणा ।।। कालवैकालिकाइदार्णि कालेत्ति दारं, तत्थ गाहा निक्षेपादि चूर्णी दवे अद्धअहाउय, उवकमे देसकाल काले य । तहय पमाणे वण्णे भावे पगयं तु भाषेणं ॥११-९५०|| एसा & १ अध्ययने गाहा जहा सामाइयनिजुत्तीए तहा परूबेतव्या, एत्थ दिवसपमाणकालेण अधिगारो, तत्थरि ततियपोरुसीए ठविज्जइत्तिकाउं| तेण अधिगारो, आदत्तो य णिज्जहिउँ अवरोहकाले, तस्स पडिसेहो कज्जइ, विगतः कालो चिकाला, अथवा विकालः कालः,18 ॥ ५ ॥ & असकलः खंडचत्यनातर, विकालबेलायां परिसमाप्त वकालिकं, अथवा (एतत् ) विकाले पठ्यत इति वैकालिक, अथवा दशैतानि अध्ययनानि व्यवगते दिने कृतानीति दशवकालिकं ।। दशवकालिकमिति कः शब्दार्थो?, विकालेन निवृत्तं संकाशादिपाठाच्चातुप्रारधिको ठक, 'तद्धिते बचामादि' रित्यादिवृद्धिः वैकालिकं ।। इदाणिं सुतं, तं चउविहं-णाममुतं ठवणसुतं दय्बसुतं भावसुर्य, & जहा अणुयोगदारे। एवं संघस्सबि चउका निक्खवओ, तहब अज्झयणस्स, तहेव णामठवणाी दव्यभावा भाणिऊणं जहा अणुयोगदारे, णवरं भावज्झयणस्स इमाओ निरुत्तिगाहाओ चउरो 'अज्झप्पस्साणयणं'(२९।। प०१६) गाहा, अधिगम्मन्ति य अस्था (३०॥ ५०१६) गाहा 'जह दीवा दीवसयं' गाथा (३१ ।। प०१६) 'अढविहं कम्मरयं' गाथा (॥३॥ पा०१६) चउरोधि कंठाओ, एवं उद्देसगस्सबि चउकओ निक्खेवो तहेव ।। इदाणिं 'जेणव जे च पडुच्च' गाथा, जेण निज्जूढं सो भाणितवो, जं वा पडुच्च निज्जूडं जइ चा णिज्जूढाणि जाए का द परिवाडिए (जद वा) अज्झयणाणि ठवियाणि पचं कारणाणि भाणियव्वाणि, 'जेणं' ति जेण एताणि दस अन्झयणाणि णिज्जूढाणि दीप SCHOREOGRECENTRACT 4%ACANCE अनुक्रम ॥ ५ ॥ CG [10]Page Navigation
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