Book Title: Aagam 42 Dashvaikalik Choorni
Author(s): Dipratnasagar, Deepratnasagar
Publisher: Deepratnasagar

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Page 16
________________ आगम (४२) प्रत सूत्रांक [-] दीप अनुक्रम [-] “दशवैकालिक”- मूलसूत्र - ३ (निर्युक्तिः + भाष्य | +चूर्णि:) अध्ययनं [१] उद्देशक [-] भाष्यं [-] मूलं [-] / [गाथा:], निर्युक्तिः [११-३३/११-३४ मुनि दीपरत्नसागरेण संकलिता: आगमसूत्र - [ ४२ ], मूलसूत्र - [०३] “दशवैकालिक” निर्युक्तिः एवं जिनदासगणि-रचिता चूर्णि: श्रीदशवैकालिक १ अध्ययने ॥ १० ॥ जो जीवो दुमपदत्थाधिकारजाणओ तस्स जं सरीरगं जीवरहियं सुखरुखो वा पुष्वभावपण्णवणं पटुच्च जहा अयं घयकुंभो आसी एस जाण सरीरव्यदुमो, इयाणिं भवियसरीरदव्यदुमो जो जीवो दुमपद्स्थाधिगारं जाणिहिदू, अणागतभावपण्णवर्ण पटुच्च जहा अयं घयकुंभो भविस्सर अयं मधुकुंभा भविस्सर, एस भवियसरीरदच्चदुमो । इदाणिं जाणगसरीरभवियसरीरवइरितो दब्बदुमो, सो तिविहो भवद्द, तं०- एगभविओ बद्धाउओ अभिमुहणामगोत्तो य, एगभविओ जो ततो भवाओ अनंतरं दुमेसु उववज्जिस्पति, बद्धाउओ नाम ' दुमेसु आउगं विद्धं ण ताथ उबवज्जड, अभिमुदनामगोतो णाम जस्स पुन्वभविए नामगोते पहणयाए पएसा णिच्छूढा इलियादिट्ठेतेणें सो पुव्यभवं जहाय अभिमुहनामगोओ दुमेमु उववज्जिकामो, एस दव्वद्रुमो । भावदुमो दुविहो-आगमओ गोआगमओ य, आगमओ जो दुमाहिगारजाणओ जहा एतेहिं कम्मेहिं करहिं उप्पज्जिस्सइ एस उवउलो, नोआगमओ दुमणामगो चाणि कम्माणि वेदितो भावदुमो भवति । सीसो आह अहो ताव असमंजसं भष्णद्द, कई खु जो जस्स जविस्स उवओगो सो सो चैत्र भविस्सह १, नो खलु लोए अग्गिमि उपउतो देवदत्तो अग्गि चैव भव, आयरिओ भइ अहो बच्छ ! अम्रुद्धोऽसि, णणु णाणंति वा संवेदति वा अधिगमोत्ति वा चेतति वा भावत्ति एते सहा एगट्ठा, जीवलक्खणं चेव णाणं, ण तु णाणातो बतिरित्तो जीवो, तेण जो० स णाया, सो जं अग्गिस्स सामस्थं दहणपयणपगासणाई जाणइ, तओ अग्गिणाणायो सो णाया अय्बइरित्तो, तेण सो अग्निसामत्थजाणओ भावग्ग चैव लम्भ, तम्हा जो जस्स जीवस्स उवओोगो सो चैव भण्णइ । इदाणि दुमस्स एमट्टियाणि जहा सकसहस्सक्खवज्जपाणिपुरंदरादीणि इंदस्स एगडियाणि एवं दुमस्सवि इमाई एगड्डियाई, 'दुमा य पादया चैव रुक्खा गच्छा' (३५-१७) गाहा । तत्थ दुमा नाम भूमीय आगासे य दोस माया दुमा, पादेहिं पिवतीति पादपाः पाएसु वा [15] द्रुमस्य निक्षेपाः सिद्धिब ॥ १० ॥

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