Book Title: Aagam 02 SUTRAKRIT Choorni
Author(s): Dipratnasagar, Deepratnasagar
Publisher: Deepratnasagar

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Page 10
________________ “सूत्रकृत” - अंगसूत्र-२ (नियुक्ति:+चूर्णि:) श्रुतस्कंध [१], अध्ययन [१], उद्देशक [१], नियुक्ति: [१-३५], मूलं [-] मुनि दीपरत्नसागरेण संकलिता......आगमसूत्र-०२], अंग सूत्र-[०२] "सूत्रकृत" जिनदासगणि विहिता चूर्णि: अनुयोग श्रीसूत्रक ताङ्गन्चूर्णिः द्वाराणि धम्माणु० गणिताणु० दवाणुयोगो, तत्थ कालियसुर्य चरणकरणाणुयोगो, इसिभासिओत्तरज्झयणाणि धम्माणुयोगो, सूरपण्णत्नादि गणितानुयोगो, दिट्ठिबातो दवाणुजोगोचि, अथवा दुविधो अणुयोगो-पुहुत्ताणुयोगो अपुहुत्ताणुयोगोय, जत्थ एते चत्तारि अणुयोगा पिहप्पिहं वक्खाणिजंति पुहुत्ताणुयोगो, अपुहुत्ताणुजोगो पुण जं एकेकं सुतं एतेहिं चउहिंवि अणुयोगेहिं सत्तहि णयसतेहिं वक्खाणिजति, केचिरं पुणकालं अपुहुर्त आसि ?, उच्यते, 'जावंति अञ्जवइरा अपुहुत्तं कालियाणुयोगस्स । तेणारेण पुहुत्तं कालियसुयदिट्ठिवाए य ॥ १॥ केण पुण पुहुत्तं कयं', उच्यते-'देविन्दवन्दितेहिं महाणुभागेहिं रक्खियजेहिं । जुगमासज्ज विभत्तो अणुयोगो तो कओ चतुधा ॥१॥ अजरक्खितउट्ठाणपारियाणियं परिकधेऊण पूसमित्ततियं विझं च विसेसेऊणं जहा य पुहुत्तीकया तहा माणिऊण इह चरणाणुयोगेण अधिकारो, सो पुण इमेहिं दारेहि अणुगंतव्यो, तंजहा-'णिक्खेवे १| गट्ठ.२ णिरुत्त ३ विधी ४ पवत्ती ५ य केण वा ६ कम्स ७ तद्दार ८ भेद ९ लक्खण १० तदरिहपरिसा ११ य सुत्तत्थो १२॥१॥ तत्थ णिक्खेबो-णासो णामादि, एगट्ठियाणि सकपुरंदरवत् , ताणि पुण सुनेगट्ठियाणि अत्थेगट्ठियाणि य, णिच्छियमुत्तं शिरुतं णिज्वयणं या णिरुतं, तं पुण सुत्तणिरुतं अत्थनिरुत्तं च, विधी-काए विपीए सुणेयच्वं , परती-कथं अणुयोगो पबत्तति ?, केवंविधेण आचार्येण अत्थो बत्तव्यो ?, एताणि दाराणि जहा आयारे कप्पे वा परूविताणि तथा परूवेयव्याणि जाव एवंविधण आयरिएण कस्स अत्थो बत्तव्योति?, उच्यते, सव्वस्सेव सुतणाणस्स, वित्थरेण पुण सुत्तकडस्स, जेणेत्थ परसमयदिडिओ परूविजंति, कस्मत्ति वत्तब्बे जति सुयकडस्स अणुयोगो, सुतकडं णं किं अंग अंगाई सुयक्खधो सुतक्खंधा अज्झयणं अज्झयणाई उद्देसो उद्देपा, उच्यते-सूयगडं णं अंग णो अंगाई पो सुरक्खधो सयक्खंधा णो अज्झयणं अज्झयणा उद्देसो उद्देसा, | चतुर अनुयोगस्य विवरणं, 'सूयगढ़' शब्दस्य पर्याया; 197

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