Book Title: Aagam 02 SUTRAKRIT Choorni
Author(s): Dipratnasagar, Deepratnasagar
Publisher: Deepratnasagar
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आगम
(०२)
“सूत्रकृत” - अंगसूत्र-२ (नियुक्ति:+चूर्णि:)
श्रुतस्कंध [१], अध्ययन [१], उद्देशक [१], नियुक्ति: [१-३५], मूलं [-] मुनि दीपरत्नसागरेण संकलिता......आगमसूत्र-[०२], अंग सूत्र-[०२] "सूत्रकृत" जिनदासगणि विहिता चूर्णि:
संघातादि
श्रीसूत्रक
ताङ्गचूर्णिः
संघायसाडणा चेव । परभवपढमे साडणमतो तणो ण कालोत्ति ॥ ३॥ जइ परपढमे साडो णिविग्गहतो य तंमि संघातो। णणु सब्बसाडसंघातणाओं समए विरुद्धाओ॥४॥?, उच्यते, जम्हा विगच्छमाणं विगतं उप्पजमाणमुप्पणं । तो परभवादिसमए मोक्खादाणाण ण विरोधो ॥५॥ चुतिसमए णेहभवो इहदेहविमोक्खतो जहाऽतीते । जइ ण परभवोऽवि तहिं तो सो को होउ संसारी? ॥६॥ णणु जह विग्गहकाले देहाभावेऽवि परभवग्गहणं । तह देहाभावम्मिवि होजेहभवोऽवि को दोसो? ॥७॥ जं चिय विग्गहकाले देहाभावेऽपि तो परभवो सो। चुइसमए उ ण देहो ण विग्गहो जइ स को भोतु ।।८।। इदाणिं अंतरं| संघान्तरकालो जहण्याओ खुड्डयं तिसमयूर्ण । दो विग्गहम्मि समया ततिओ संघायणासमयो ॥१॥ तेहूणं खुड्डभवं धरित्तु परभवमविग्गहेणेव । गंतूण पढमसमए संघाययओ स विष्णेयो ॥२॥ उकोसो तेत्तीसं समयाहियपुवकोडिअहियाई । सो सागरोचमाई अविग्गहेणेव संघातं ॥३॥ काऊण पुष्वकोडिं धरि सुरजेट्टमायुगं तत्तो । भोत्तूण इह ततीए समए संघातयंतस्स ।। ४ ।। इदाणिं वेउव्यियस्स-वेउन्चियसंघायो समओ सो पुण विउवणादीए । ओरालियाणमथवा देवादीणादिगहणमि ॥१॥ उक्कोसो समयदुर्ग जो समय विउविउं मतो वितिए । समए सुरेसु वच्चति निविग्गहतो यतं तस्स |२।। उभयं जहष्ण समयो सो पुण दुसमयविउब्वियमतस्स । परमतराई संघातसमयहीणाई तेतीसं ॥३॥ वेउच्चियपरिसाडणकालोवि समय एव । इदाणि अंतरं, | वेउब्वियसरीरसंघातंतरं जहण्णेणं एगसमय, सो पढमसमयविउवियमयस्म विग्गहेण ततियए समए वेउबिएसु देवेसु संघातेतस्म
भवति, अथवा ततियसमयवेउवियमतस्स अविग्गहेणं देवेसु संघातपरिसाडणंतर जहणणेणं समय एव, सो पुण चिरविउवितस्स | देवेसु अविग्गहेणं संघातेंतस्स भवति, साडम्स अंतरं जहण्णेणं अंतोमुहुर्त, तिण्हवि एतेसिं अंतर उकोसेणं अणंतकाल वणस्सतिकालो।
अनुक्रम
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