Book Title: Aagam 02 SUTRAKRIT Choorni
Author(s): Dipratnasagar, Deepratnasagar
Publisher: Deepratnasagar

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Page 19
________________ आगम (०२) “सूत्रकृत” - अंगसूत्र-२ (नियुक्ति:+चूर्णि:) श्रुतस्कंध [१], अध्ययन [१], उद्देशक [१], नियुक्ति: [१-३५], मूलं [-] मुनि दीपरत्नसागरेण संकलिता......आगमसूत्र-[०२], अंग सूत्र-[०२] "सूत्रकृत" जिनदासगणि विहिता चूर्णि: नि क्षेत्रादि करणानि श्रीसूत्रका परिणामकरणं, दव्यकरणं गतं । इदाणिं खेत्तकरणं-'ण विणा आगासेणं' गाथा ।। यत्किचिदिति उत्क्षेपणापक्षेपणादि गचूर्णिः घटादिकरणादि वा न क्षेत्रमंतरेण क्रियते, क्षेत्रं-आकाश, तस्स करणं नस्थि, तहावि वंजणपरियावण्णं उच्छुकरणं, सालिकरणं जहा वा साधहि अच्छमाणेहिं खेतीकतो गामो णगरं वा, मि वा खेत्ते करणं कीरति भणिजति वा, कालकरणंति 'कालोजोजावतियों' गाथा।१०। जावता कालेणं क्रियते, यम्मि वा काले क्रियते, एवं ओहेण, णामओ पुण इमे इकारस करणे (१०-११-१२) विवं च बालवं चेव, कोलवं थीविलोयणं । गराइ वणियं विट्ठी, सुद्धपडिवए णिसादीया। पक्खतिधयो दुगुणिआ जोण्डादौ सोधये ण पुण काले । सत्चहिए देवसियं तं चिथ रूवाहियं रति ॥१॥ सुचराष्टदिवैकरपूर्णदिवाकृतिरामदिवादरभूतदिवा' एसु विट्ठी, सुद्धी पडिवयरति दिवसस्स य पंचमट्ठमी रत्ति। दिवसस्स बारिसी पोणिमाए रविवं होति ।।१।। बहुलचउत्थी' दिवा बहुलस्स य सत्तमी हवति रतिं । एकारसिं च बहुले दिवा व होति करणं तु ।। २ ।। सउणि चतुप्पय मागं कित्थुगं च चतुरो धुवा करणा । किण्हचउद्दसिर िसउणी सेसं तियं कमसो ॥३॥ कालकरणं गतं । इदाणि भावकरण-भावस्स भावेण भावे या करणं, तत्थ निज्जुत्तिगाथा-भावे पयोगवीसस पयोगसा मूल उत्तरं चेव । उत्तरकमसुतजोवणवण्णादी भोयणादीसु ॥१२॥ भावकरणं दुविध-पयोगसा वीससा य, पयोगकरणं दुविध-मूलपयोगकरणं उत्तरपयोगकरणं च, मूलपयोगकरणं पंच शरीराणि, ताणि पुण उदइयभावणिफण्णाणि, का तहिं भावणा?, उदइयो हि भावो दुविधो-जीवोदइओ अजीवोदइओ य, तत्थ जीवोदइओ पंचण्डं सरीराणं अण्णातरेणोदितो जीवः स तथाभूत इति जीवोदयभावो, अथ पुण जीवोदयोदितानि शरीरारंभकाणि द्रव्याणि तथा समुदिताणि तत्थ शरीरे भवन्तीत्यर्थः, अजीबोदयिको भावः, यथा च तत्र द्रव्यकरणोपदिष्टं दव्दियाई विसओसधादीहिं तथेहापि तेषु MIRRHETHERes "ound innousican aniICTI ॥१४॥ [18]

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