Book Title: Aagam 02 SOOTRAKUT Moolam evam Vrutti
Author(s): Dipratnasagar, Deepratnasagar
Publisher: Deepratnasagar
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आगम
(०२)
“सूत्रकृत्” - अंगसूत्र-२ (मूलं+नियुक्ति:+वृत्तिः )
श्रुतस्कंध [१.], अध्ययन [-], उद्देशक -1, मूलं [-], नियुक्ति: [१०] मुनि दीपरत्नसागरेण संकलित......आगमसूत्र-[०२], अंग सूत्र-[०२] “सुत्रकृत्" मूलं एवं शिलांकाचार्य-कृत् वृत्ति:
प्रत
सूत्रकृताङ्गं शीलाका चार्षीयत्तियुतं
ध्ययने क. रणनिक्षेपः
सूत्रांक
-
॥५॥
दीप अनुक्रम
यदा-यत् यस्मिन् काले क्रियते यत्र वा काले करणं व्याख्यायते तत्कालकरणम् , एतदोघतः, नामतस्त्वेकादश करणानि ॥१०॥ तानि चामूनि
बंद च बालवं चेच, कोलवं तेत्तिलं तहा । गरादि वणियं चेच, विही हवइ सत्तमा ।।११।। सउणि चउप्पयं नागं किंसुग्धं च करणं भवे एपं । एते चत्तारि धुवा अन्ने करणा चला सत्त ॥ १२॥ चाउद्दसि रत्तीए सउणी पडिवजए सदा करणं । तत्तो अहक्कम खलु चउप्पयं णाग किंसुग्धं ॥१३॥ ऐतगाथात्रयं सुखोभेयमिति ॥ ११ ॥ १२॥ १३ ॥ इदानीं भावकरणप्रतिपादनायाऽऽह- भावे पओगवीसस पओगसा मूल उत्तरे चेव । उत्तर कमसुयजोवण वण्णादी भोअणादीसु॥१४॥
भावकरणमपि द्विधा--प्रयोगविस्रसाभेदात् , तत्र जीवाश्रितं प्रायोगिक मूलकरणं पञ्चानां शरीराणां पर्याप्तिः, तानि हि पर्याप्तिनामकर्मोदयादौदयिके भावे वर्तमानो जीवः खवीर्यजनितेन प्रयोगेण निष्पादयति । उत्तरकरणं तु गाथापश्चार्द्धनाह-उत्तरकरणं क्रमश्रुतयौवनवर्णादिचतूरूपं, तत्र क्रमकरणं शरीरनिष्पत्युत्तरकाल बालवस्थविरादिक्रमेणोत्तरोत्तरोऽवस्थाविशेषः, श्रुतकरणं तु व्याकरणादिपरिज्ञानरूपोऽवस्थाविशेषोऽपरकलापरिज्ञानरूपश्चेति,यौवनकरणं कालकृतो वयोऽवस्थाविशेषो रसायनायापादितो वेति,
१ श्रीविलोयण प्र० । २ पक्रतिहिलो दुगुणिआ दुरूनहीणा व सुरूपक्खंभि । सत्तहिए देव तिथं तं चैव रूवा हियं रति ॥ १॥ इति गावानुसारेण करणयोजना | xx२-८-२०६३ (विधि) + (वणिक)-१०-२, २०४६+१७ (प. वि.)।
॥५॥
SantauranANJana
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amtaram.orm
'करण' शब्दस्य निक्षेपा: एवं भेदाः, तद् अंतर्गत् एकादशा: करणा:
~144

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