Book Title: Aagam 02 SOOTRAKUT Moolam evam Vrutti
Author(s): Dipratnasagar, Deepratnasagar
Publisher: Deepratnasagar
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आगम
(०२)
“सूत्रकृत्” - अंगसूत्र-२ (मूलं+नियुक्ति:+वृत्ति:)
श्रुतस्कंध [१.], अध्ययन [-], उद्देशक [-], मूलं [-], नियुक्ति: [८] मुनि दीपरत्नसागरेण संकलित......आगमसूत्र-[०२], अंग सूत्र-[०२] “सुत्रकृत्” मूलं एवं शिलांकाचार्य-कृत् वृत्तिः
प्रत
सुत्रांक
नवि सीओ नवि उण्हो समो पगासोय होइ उजओओ । कालं महलं तमपि य वियाण तं अंधयारंति ॥३॥ दब्बस्स चलण पफंदणा उ सा पुण गई उ निदिहा । वीससपओगमीसा अत्तपरेणं तु उभओवि ॥४॥ तथाऽनेन्द्रधनुर्विद्युदादिषु कार्येषु ल यानि पुगलद्रव्याणि परिणतानि तद्विरसाकरणमिति ॥८॥ मतं द्रव्यकरणम् , इदानी क्षेत्रकरणानिधित्सयाऽऽह
ण विणा आगासेणं कीरइ जं किंचि खेत्तमागासं । वंजणपरियावणं उच्छुकरणमादियं बहुहा ॥९॥ 'क्षि निवासगत्योः' असादधिकरणे ट्रना क्षेत्रमिति, तच्चावगाहदानलक्षणमाकाशं, तेन चावगाहदानयोग्येन विना न किञ्चिदपि कर्तुं शक्यत इत्यतः क्षेत्रे करणं क्षेत्रकरणं, नित्यलेऽपि चोपचारतः क्षेत्रस्यैव करणं क्षेत्रकरणं, यथा गृहादावपनीते कुत| माकाशमुत्पादिते विनष्टमिति, यदिवा 'व्यञ्जनपर्यायापन' शब्दद्वाराऽध्यातम् 'क्षुकरणादिक मिति इक्षुक्षेत्रस करणम् लाङ्ग-1
लादिना संस्कार क्षेत्रकरणं, तच्च बहुधा-शालिक्षेत्रादिभेदादिति ॥ ९॥ साम्प्रतं कालकरणाभिधिस्सयाऽऽह -- | कालो जो जावइओ जंकीरद जमि जंमि कालंमि। ओहेण णामओ पुण करणा एकारस हवंति ॥१०॥
कालस्यापि मुख्यं करणं न संभवतीत्यौपचारिक दर्शयति-'कालो यो यावानिति' यः कश्चिद् घटिकादिको नलिकादिना व्यवच्छिद्य व्यवस्थाप्यते, तद्यथा--पष्टयुदकपलमाना घटिका द्विघटिको मुहर्तखिशन्ममुहूर्तमहोरात्रमित्यादि, तत्कालकरणमिति,
१ नापि शीतो नाप्युष्णः समः सकाशो भवति बोयोतः। कालं मलिनं तमोऽपि च विजानीहि तदन्पकार इति॥३॥ द्रव्यस्य चलनं प्रश्पन्दना तु सा पुनर्गतिस्तु 18 निविष्ठा । विधसाप्रयोगमिधाचात्मपराभ्यां तूभयतोऽपि ॥ ४॥ २ साहहिं भरकमाणहि गामो सेतीको भू.।
दीप अनुक्रम
ceaestroescenesenterventserrestroes
'करण' शब्दस्य निक्षेपा: एवं भेदा:
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