Book Title: 24 Tirthankar Darshan Chaityavandan Stuti aur Thoy Author(s): Ajaysagar Publisher: Z_Aradhana_Ganga_009725.pdf View full book textPage 9
________________ श्री अभिनंदनस्वामि भगवान चैत्यवंदन नंदन संवर रायना, चोथा अभिनंदन, कपि लंछन वंदन करो, भवदुःख निकंदन. सिद्धारथा जस मावडी, सिद्धारथ जिन ताय, साडा त्रणशें धनुषमान, सुंदर जस काय. विनीतावासी वंदीए ए, आयु लख पचास, पूरव तस पद पद्मने, नमतां शिवपुर वास स्तवन श्री अभिनंदनस्वामी हमारा अभिनंदन स्वामि हमारा, प्रभु भव दुःख भंजनहारा; ये दुनिया दुःख की धारा, प्रभु इनसे करो निस्तारा. अभि.१ हुंकुमति कुटिल भरमायो, दुरनीति करी दुःख पायो; अब शरण लीयो है तारो, मजे भवजल पार उतारो..। अभि .२ प्रभु शीख हैये नवि धारी, दुर्गतिमां दुःख लीयो भारी; इन कर्मो की गति न्यारी, करे बेर बेर खुवारी... अभि.३ तुमे करुणावंत कहावो, जगतारक बिरुद धरावो, मेरी अरजीनो एक दावो, इन दुःख से क्युं न छुडावो..अभि.४ मे विरथा जनम गुमायो, नहीं तन धन स्नेह निवार्यो; अब पारस प्रसंग पामी, नहीं वीरविजय कुं खामी..... अभि.५ स्तुति आत्मानंद प्रगट करी अभिनंदे जेह, अभिनंदन छे आतमा गुणपर्याय गेह; आतम अभिनंदन थतो अभिनंदन ध्याई,ध्यान समाधि एकता लीनता पद पाई.१ O KOROKAMORONOAONKOTA KLA STANPage Navigation
1 ... 7 8 9 10 11 12 13 14 15 16 17 18 19 20 21 22 23 24 25 26 27 28 29 30 31 32 33 34 35 36 37 38 39 40 41 42 43 44 45 46 47 48 49 50