Book Title: 24 Tirthankar Darshan Chaityavandan Stuti aur Thoy
Author(s): Ajaysagar
Publisher: Z_Aradhana_Ganga_009725.pdf
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श्री वासुपूज्यस्वामि भगवान
चैत्यवंदन वासव वंदित वासुपूज्य, चंपापुरी ठाम; वसुपूज्य कुल चंद्रमा, माता जया नाम. महिष लंछन जिम बारमा, सित्तेर धनुष प्रमाण; काया आयु वरस वली, बहोंतेर लाख वखाण. संघ चतुर्विध थापीने ए, जिन उत्तम महाराय; तस मुख पद्म वचन सुणी, परमानंदी थाय.
३
स्तवन स्वामी! तुमे कांई कामण कीर्छ, चित्तडु अमाकं चोरी लीधुं; साहिबा वासुपूज्य जिणंदा, मोहना वासुपूज्य जिणंदा. अमे पण तुम शुं कामण करशुं, भक्ते ग्रही मनघरमां धरशुं, साहिबा०१ मनघरमां धरीया घर शोभा, देखत नित रहे थिर शोभा; मन वैकुंठ अकुंठित भगते, योगी भाखे अनुभव युक्ते.
साहिबा०२ क्लेश वासित मन संसार, क्लेश रहित मन ते भवपार; जो विशुद्ध मन घर तुमे आया, प्रभु तो अमे नवनिधि-ऋद्धि पाया. साहिबा० ३। सात राज अलगा जई बेठा, पण भगते अम मनमा पेठा; अलगाने वलग्या जे रहे, ते भाणा खडखड दुःख सहे. साहिबा०४ ध्याता ध्येय ध्यान गुण एके, भेद छेद करशुं हवे टेके; क्षीरनीर परे तुम शुं मिळशें, 'वाचक यश' कहे हेजे हलशुं. साहिबा०५
स्तुति आतम वासुपूज्य छे, करो आविर्भावे, निश्चय नयदृष्टिबळे, ब्रह्मभावना दावे; वासुपूज्यना ध्यानथी, वासुपूज्यजी थावो, ध्यान समाधि एकता, लीनताथी सुहावो. १
KAK

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