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श्री अनंतनाथ भगवान
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चैत्यवंदन विमलात्मा करीने प्रभु, थया अनंत जिनेश; अनंत ज्योतिर्मय विभु, नहीं राग ने द्वेष. अनंत जीवन ज्ञानमय, आनंद सहज स्वभावे; द्रव्य क्षेत्र ने कालथी, भावथी सत्य सुहावे. अनंत रत्नत्रयी वर्या ए, अनंत जिनवर देव; बुद्धिसागर भावथी. करवी भक्ति सेव
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धार.१.
धार.२.
धार.३.
स्तवन धार तलवारनी सोहिली दोहिली, चउदमा जिन तणी चरण सेवा धार पर नाचता देख बाजीगरा, सेवना धार पर रहे न देवा. एक कहे सेविये विविध किरिया करी, फल अनेकांत लोचन न देखे. फल अनेकांत किरिया करी बापडा, रडवडे चार गतिमांहि लेखे. गच्छना भेद बहु नयण निहालतां, तत्त्वनी वात करतां न लाजे. उदर भरणादि निज काज करतां थकां, मोह नडिया कलिकाल राजे. वचन निरपेक्ष व्यवहार झूठो कह्यो, वचन सापेक्ष व्यवहार साचो. वचन निरपेक्ष व्यवहार संसार फल, सांभली आदरी कांइ राचो. देव गुरु धर्मनी शुद्धि कहो किम रहे, किम रहे शुद्ध श्रद्धा न आणो. शुद्ध श्रद्धान विण सर्व किरिया करी,छार पर लींपणुंतेह जाणो. पाप नहिं कोइ उत्सूत्र भाषण जिस्यो, धर्म नहीं कोई जग सूत्र सरिखो. सूत्र अनुसार जे भविक किरिया करे, तेहनुं शुद्ध चारित्र परिखो. एह उपदेशनो सार संक्षेपथी, जे नरा चित्तमां नित्य ध्यावे... ते नरा दिव्य बहु काल सुख अनुभवी, नियत आनंदघन राज पावे.
धार.४.
धार.५.
धार.६.
धार.७.
स्तुति अनंत आतम द्रव्यथी, क्षेत्र काल ने भावे; जाणे अंत न थाय छे, आठ कर्म अभावे; - द्रव्य क्षेत्र काल भावथी, अनंत कर्मनो आवे; अनंतनाथ जणावता, ब्रह्म अंत न थावे. १