Book Title: 24 Tirthankar Darshan Chaityavandan Stuti aur Thoy
Author(s): Ajaysagar
Publisher: Z_Aradhana_Ganga_009725.pdf
View full book text
________________
PM
श्री नेमिनाथ भगवान
चैत्यवंदन नेमिनाथ बावीसमा, शिवादेवी माय; । 'समुद्र विजय पृथ्वीपति, जे प्रभुना ताय. दश धनुषनी देहडी, आयु वर्ष हजार; शंख लंछन धर स्वामीजी, तजी राजुल नार. 'सौरीपुरी नयरी भली ए, ब्रह्मचारी भगवान; जिन उत्तम पद पद्मने, नमतां अविचल ठान
स्तवन निरख्यो नेमि जिणंदने अरिहंताजी, राजीमती को त्याग भगवंताजी, ब्रह्मचारी संयम ग्रह्यो अरि., अनुक्रमे थया वीतराग भग. चामर चक्र सिंहासन अरि., पादपीठ संयुक्त भग.. छत्र चाले आकाशमां अरि., देव दुंदुभि वर उत्त भग. सहस जोयण ध्वज सोहतो अरि., प्रभु आगल चालंत भग., कनक कमल नव उपरे अरि., विचरे पाय ठवंत भग. चार मुखे दीये देशना अरि.,त्रण गढ झाक-झमाल भग.; 'केश रोम श्मश्रु नखा अरि., वाधे नहीं कोइ काल भग. कांटा पण ऊंधा होय अरि.,पंच विषय अनुकूल भग., षट् ऋतु समकाले फले अरि., वायु नहिं प्रतिकूल भग. पाणी सुगंध सुर कुसुमनी अरि., वृष्टि होय सुरसाल भग.; पंखी दीये सुप्रदक्षिणा अरि., वृक्ष नमे असराल भग. जिन उत्तम पद पद्मनी अरि., सेव करे सुर कोडी भग.; चार निकायना जघन्यथी अरि., चैत्य वृक्ष तेम जोडी भग.
स्तुति द्रव्य भावथी नेमि सरखा, बळिया जैनो थावेजी; जैनधर्म प्रसरावे जगमां, शुभपरिणामना दावेजी; शुभ ते धर्म प्रशस्य कषायो, करतां पुण्यने बांधेजी; शुद्ध परिणामे वर्ततां, मुक्ति क्षणमां साधेजी.
MERS

Page Navigation
1 ... 43 44 45 46 47 48 49 50